पेट पलना इतना भी सरल नहीं होता .जिनको मा-बाप का सहारा मिलता है वह तो जब तक सहारा रहता है तब तक तो जी लेते है .
बेसहारों को जीने के लिये सौ सौ पापड़ बेलने पड़ते हैं .बड़ी जिल्लत झेलनी पडती है .पेट के खातिर बड़ा शर्मिंदा होना पड़ता है .मांगने पर मौत कोई देता नहीं -पेटमे लगती रहती हैआग हर दो चार घंटे पर -असह्य आग और उस आग के संन्य तो मौत ही एक रास्ता होता है या किसी भी तरह पेट कि आग का निवारण .खाना खुद कमाना सिखने तक बड़ा कष्ट होता है . फिर खाना कमाने के लिये जिसके पास खिलाने के लिये अतिरिक्त होता है ,या जहाँ खाना पड़ा या रखा होता है उसके नखरे .पेट की आग के सामने सारी नैतिकता आत्म सम्मान का प्रश्न गौण हो जाता है . बस किसी तरह पेट की आग शांत हो - फिर देखा जायेगा .
कुटिल लोगों ने भूख के इस चरित्र को जाना और समझा .
पहले कुछ ऐसा करते हैं की आप को भूख से बिलबिला देते हैं ., फिर आपको अपनी शर्तों पर नाचने के लिये मजबूर करते हैं ,आपका उचित - अनुचित ,नैतिक -अनैतिक ,स्वस्थ-अस्वस्थ ,लाभकारी -हानिकारक शोषण करते हैं और आप भूख की वेदना के वसीभूत जानते हुए भी उनका प्रतिकार करने में असफल होते हैं ,आपके पास आत्म समर्पण के आलावा कोई विकल्प ही नहीं रहता.
पर हाँ ,भूख की इस वेदना को वही समझ सकता है जो खूद भूखा रहा हो - भूख धीरे धीरे मनुष्य कोअपनी ही नजरों से गिराने लगती है ,लचर बना देती है --- भगवन ,कभी किसी को भूख का दंड मत देना -- भूख सारे पापों की जननी है .
बेसहारों को जीने के लिये सौ सौ पापड़ बेलने पड़ते हैं .बड़ी जिल्लत झेलनी पडती है .पेट के खातिर बड़ा शर्मिंदा होना पड़ता है .मांगने पर मौत कोई देता नहीं -पेटमे लगती रहती हैआग हर दो चार घंटे पर -असह्य आग और उस आग के संन्य तो मौत ही एक रास्ता होता है या किसी भी तरह पेट कि आग का निवारण .खाना खुद कमाना सिखने तक बड़ा कष्ट होता है . फिर खाना कमाने के लिये जिसके पास खिलाने के लिये अतिरिक्त होता है ,या जहाँ खाना पड़ा या रखा होता है उसके नखरे .पेट की आग के सामने सारी नैतिकता आत्म सम्मान का प्रश्न गौण हो जाता है . बस किसी तरह पेट की आग शांत हो - फिर देखा जायेगा .
कुटिल लोगों ने भूख के इस चरित्र को जाना और समझा .
पहले कुछ ऐसा करते हैं की आप को भूख से बिलबिला देते हैं ., फिर आपको अपनी शर्तों पर नाचने के लिये मजबूर करते हैं ,आपका उचित - अनुचित ,नैतिक -अनैतिक ,स्वस्थ-अस्वस्थ ,लाभकारी -हानिकारक शोषण करते हैं और आप भूख की वेदना के वसीभूत जानते हुए भी उनका प्रतिकार करने में असफल होते हैं ,आपके पास आत्म समर्पण के आलावा कोई विकल्प ही नहीं रहता.
पर हाँ ,भूख की इस वेदना को वही समझ सकता है जो खूद भूखा रहा हो - भूख धीरे धीरे मनुष्य कोअपनी ही नजरों से गिराने लगती है ,लचर बना देती है --- भगवन ,कभी किसी को भूख का दंड मत देना -- भूख सारे पापों की जननी है .
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