शून्य से शिखर के बीच क्या हुआ करता है ,एक कश्ती ,तूफ़ान , लहरें ,डूब जाने -खो जाने का खौफ , एक अरमान -एक पतवार और किनारा और शिखर तक पहुचने का पागलपन , रोमांच ,आशा-निराशा के बीच दौड़ता -भागता ,तैरता -डूबता चंचल मन और जिजीविषा - अनदेखा शिखर का एक सपना -- शून्य नहीं रहूँगा -शून्य से इकाई फिर दहाई और इसी तरह आगे बढ़ने का एक बेचारा प्यारा सा संकल्प --- बस यही तो सारा संसार है जो शून्य से शिखर के बीच बसा हुआ है .
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