जब पीढ़ियाँ साथ मिल बैठती है तो एहसास बदल जाते हैं , नजर ही बदल जाती है , फितरत बदल जाती है ,हसरत बदल जाती है -- जाने वाला सब कुछ दे जाने को उतावला सा हो उठता है , आने वाला जाने वाले को आश्चर्य से देखता है ,जाने की तो नहीं पर इतना चला जा सका यह सोचता ही रह जाता है और फिर अपने नन्हे प्पंवों की और देख मन ही मन डर सा जाता है ,संकोच से भर सा जाता है -- जाने वाल आश्वस्त कर कर ही जाना चाहता है --और जो है वह अभी कर ही रहा है -उसे डर है जाने वाला जाते जाते भी कहीं हिसाब न मांग बैठें और उसे आने वाले के लिये भी तो कुछ कहना है , करना है .
पीढ़ियों को मिलते जुलते रहना चाहिये .सहारा बनते , लेते-देते ,साथ साथ चलना चाहिये . पुराने को खुद को बोझ बन लड़ने ,लादने , लदने ,लदवाने से बचना चाहिये .
पीढ़ियों को मिलते जुलते रहना चाहिये .सहारा बनते , लेते-देते ,साथ साथ चलना चाहिये . पुराने को खुद को बोझ बन लड़ने ,लादने , लदने ,लदवाने से बचना चाहिये .
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