Tuesday, 3 February 2015

गलियों का स्वाद कितना कसैला होता है , यह मुझे पता है ,भूख आँत कैसे जलाती है यह भी पता है ,
क्लक्त्त्ते के बड़ाबाजार से भूखे ही कांकुरगाछी  पैदल चले जाना -चलते जाना , बस भाड़ा १० पैसा बचाना कैसा लगता है मुझ्र पता है .  अपनी  माँ का ,अपने पिता का अपमान खुद ही देखना कैसा लगता है ,मुझे पता है . बिना  गेट बंद किये एक लैट्रिन में निवृत होना कैसी श्रम पैदा करता है मुझे पता है .सुबह चार बजे पिता-पुत्र अलमुनियम पे पुराने बर्तनों को क्यों और कैसे दस किलो के लोहे के हथौड़े से पीटते थे ,मुझे मालूम है . पीठ पर रस्सियों के जल में अलमुनियम के बर्तन ढोना याद है , बस पर पीछे की और से सीधी पर चढ़ते हुए सर के बल बोझ चढ़ाना या उतरना कैसा लगता है मुझे याद है . शेरे पंजाब होटल में सरदार जी किन शर्तों पर कभी कभी सिंघारा खिलाया करता था याद है . बरसात में भींगते हुए पटना स्टेसन पर अख़बार बेचना याद है . एक दिन नहीं बिक पाया तो बुक्का फाड़ कर रोना याद है .जली हुई खिचड़ी खाना  ,रिश्तेदार को खिलाना याद है .
एक एक पुरानी किताबों के लिये क्या क्या किया , सब याद है .कुर्सी पर बैठ जाने पर किया गया अपमान याद है . बैंक के हेड कैशियर से बात कर लेने पर खाई जूते की मार याद है .गुनी गोसाई ने मर खनने से बचाया याद है .
बैंक के मेनेजर के अनुरोध पर दस हजार के गारंटी पेपर पर भी किसी का हस्ताक्षर न करना और उसके बाद की निराशा याद है . उन्नीस साल की उम्र में सी इ आई आई बी की परीक्षा के प्रत्येक पार्ट के प्रत्येक पेपर में मेरे सहयोग से दिस्तिन्क्सं लाये बैंक कर्मियों का उत्साह याद है .सुबह चार बजे बैंक कर्मियों का पढ़ने के लिये आना ,प्रतीक्षा करना याद है 

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