Friday, 27 February 2015

अंदरखाने के कुछ खेल बिना रोक टोक - बिना हिचक  चलते  रहते  है - सारे बड़े लोग जो पूरे देश में कुछ हजार होंगे ,परस्पर एक दुसरे का ख्याल रखते है , अधिकांश तो बोल कर ही यह सुनिश्चित कर लेते है - उन्हें विश्वास है -कह दिया है बस हो ही जायेगा . आप मेरा कहा  कीजिये मैं आपका  कहा करूंगा . योग्यता नहीं , यही कहा -कहवाया  ही उपर काम आता है .
वैसे देखा देखी यह नीचे भी हो रहा है .
योग्यता लगभग अधम हो कर रह गयी है . अब तो यह निर्लज्ज भाव से सुस्पष्ट हो चला है .
या तो अपना  होना , अथवा  किसी का हो जाना - कहना - कहवाना ही अंततः प्रभावी होता है
कभी कभार बिल्ली के भाग से छिका टूट जाये सो अलग बात है .
साफ बात है -योग्य होने से नहीं , लगना पड़ता है , लगने से ही होता है .
यदि नहीं लगे तो आपके अधिकार तक की रक्षा नहीं हो सकेगी .योग्यता तथा अधिकार मिल कर आपकी रक्षा नहीं कर सकता क्यों कि आपके लिये अलग से कहने वाला ,लगने वाला कोई नहीं है .
वैसे यह है एकदम अंदरखाने की बात .
दिखने में कुछ और दीखता ही है .
वैसे कहा हुआ , कहवाया हुआ ,लगा हुआ कोई  बताता नहीं . यह सीने में दबा राज ही रहता है .
जितना उपर जाईयेगा , और अधिक यही पाईयेगा . पसंद और  सिफारिश . बस यही सत्य है 

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