Thursday, 26 February 2015

अपने मन की ही करने वाले - चमड़े का सिक्का चलने वाले , दिल्ली से दौलताबाद और फिर दौलताबाद से दिल्ली करने वाले बहुत सी संस्थाओं के शिखर पर आज भी बैठे हैं - शायद भविष्य में भी यह क्रम  चलता रहेगा .
यह धरती ऐसे मद-वीरों से कभी खाली नहीं होगी .
समाज यहाँ वहाँ टुकड़ों में कभी कभार मिल बैठ कर रो धो लेगा , निन्दा कर  देगा --- बस इतना ही .
असल में मद-वीरों को सभी काल में सभी जगह कुछ पालतू मिल जाते हैं . ये समाज के बीच रह कर नाटकीय क्रिया-कलापों से स्वेच्छाचारी मद्वीरों कभी दिखाते रहते हैं अथवा पुरे समाज को रक साथ खड़े होने से रोकते रहते हैं , समाज को टुकड़ों में ही बने रहन को बाध्य करते हैं .

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