नीड़ों में या महलों में
आखिर तो रह के भी उड़ जाना है।
बसंत, हो या बहार
सब कुछ तो खिल, झड जाना है।
आते आते आना क्या
आखिर तो आ के अब यूँ जाना है।
पर साफ साफ कहे देता हूँ
रहूंगा , खिलूँगा ,आऊंगा दम भर
आखिर तो रह के भी उड़ जाना है।
बसंत, हो या बहार
सब कुछ तो खिल, झड जाना है।
आते आते आना क्या
आखिर तो आ के अब यूँ जाना है।
पर साफ साफ कहे देता हूँ
रहूंगा , खिलूँगा ,आऊंगा दम भर
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