वैसे मैं केवल संकल्प ही कर सकता हूँ .दावा नहीं .सदैव भय बना रहता है . संतों ने कहा है "आरत के नहीं दोष गुशाईं ". बुभुक्षितम किम न करोति पापम . सच है ,विवशता को प्रणाम .विवशता की स्थिति में वस्तुतः धार्मिक ,नैतिक आदि मूल्यों का क्या होगा , अंतिम रूप से कोई भविष्य वाणी नहीं की जा सकती . विवशता का दबाव प्रचंड होता है .
मनुष्य की धारणा और परमात्मा के निश्चय में अंतर हो सकता है .
यह अलग बात है की क्रम प्रधान विश्व करी राखा के सिद्धान्त की छाया में कर्मयोगी , फकीर , भक्तियोगी , विधि के विधान से भी लोहा लेते हैं .
पर जिन लोगों ने विशेष कर्म कर सफलता पाई है क्या उनके पीछे भी विधि की प्रेरणा नहीं रही होगी .
इस श्रृष्टि में अनंत बीज बिना किसी वृक्ष को जन्म दिए नष्ट हो जाते है , कुछ तो अकुर तक नहीं पाते कुछ पशुओं के , कुछ पक्षियों के , कुछ अन्य जीवों के , कुछ मनुष्यों के भोजन बन जाते हैं अथवा अन्य उपयोग में आ जाते हैं या ले आये जाते हैं और उनका अस्तित्व ही समाप्त हो जाता है .
क्या उन बीजों में वृक्ष बनने ,बनाने की लालसा नहीं रही होगी . उन्हें क्या वृक्ष बनना अच्छा नहीं लगता .
अनंत इच्छाएँ बिना किसी धारणा के ही प्रतिदिन मरती हैं .अनन्त धारणाएँ भी प्रतिदिन अकारण ही शांत हो जाती हैं .अनंत प्रयास असफल होते रहते हैं .क्या सभी असफल प्रयासों के पीछे कोई कारण रहा होगा .
फिर अनंत प्रयास सफल भी होते रहे हैं .क्या सभी के पीछे विशिष्ट पुरुषार्थ ही रहा होगा .
न तो मैं जनता हूँ , न जानना चाहता हूँ .
सफलता ही केवल सफलता है . सफलता ही इष्ट है
सफलता ही सत्य है .
सफलता ही ब्रह्म है .
असफलता ही असत्य है . विजय ही सत्य और सफलता का प्रमाण है .
विजय ही सफल और योग्यता का प्रमाण है .
मनुष्य की धारणा और परमात्मा के निश्चय में अंतर हो सकता है .
यह अलग बात है की क्रम प्रधान विश्व करी राखा के सिद्धान्त की छाया में कर्मयोगी , फकीर , भक्तियोगी , विधि के विधान से भी लोहा लेते हैं .
पर जिन लोगों ने विशेष कर्म कर सफलता पाई है क्या उनके पीछे भी विधि की प्रेरणा नहीं रही होगी .
इस श्रृष्टि में अनंत बीज बिना किसी वृक्ष को जन्म दिए नष्ट हो जाते है , कुछ तो अकुर तक नहीं पाते कुछ पशुओं के , कुछ पक्षियों के , कुछ अन्य जीवों के , कुछ मनुष्यों के भोजन बन जाते हैं अथवा अन्य उपयोग में आ जाते हैं या ले आये जाते हैं और उनका अस्तित्व ही समाप्त हो जाता है .
क्या उन बीजों में वृक्ष बनने ,बनाने की लालसा नहीं रही होगी . उन्हें क्या वृक्ष बनना अच्छा नहीं लगता .
अनंत इच्छाएँ बिना किसी धारणा के ही प्रतिदिन मरती हैं .अनन्त धारणाएँ भी प्रतिदिन अकारण ही शांत हो जाती हैं .अनंत प्रयास असफल होते रहते हैं .क्या सभी असफल प्रयासों के पीछे कोई कारण रहा होगा .
फिर अनंत प्रयास सफल भी होते रहे हैं .क्या सभी के पीछे विशिष्ट पुरुषार्थ ही रहा होगा .
न तो मैं जनता हूँ , न जानना चाहता हूँ .
सफलता ही केवल सफलता है . सफलता ही इष्ट है
सफलता ही सत्य है .
सफलता ही ब्रह्म है .
असफलता ही असत्य है . विजय ही सत्य और सफलता का प्रमाण है .
विजय ही सफल और योग्यता का प्रमाण है .
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