Wednesday, 8 May 2013

सूखा ,उतरा सा वह क्यों
अभी-अभी क्या बह गया है
पानी आँख का
या आँसू आँख से
या सिर के उपर से पानी,
कहीं पानी उतर तो नहीं गया है।

कहते क्यों नहीं,
अभी -अभी वह क्या कह गया है
चुप रहने के लिये
... या छिप जाने के लिये
या कुछ छिपा देने के लिये
कही सब कुछ उजागर तो नहीं हो गया है।

वह उदास क्यों था,
वह क्या सह गया है
उपहास या अपमान
सत्यानाश या सर्वनाश
य़ा कि बाकी कुछ ही रह गया है
कहीं कुछ खो तो नहीं गया है।

बताते क्यौ नहीं
पूछ तो रहा हूँ, अब क्या रह गया है
मलाल,अफसोस,पछतावा
या कि केवल याद
हो सकता है, हो कोइ स्वाद
मैं बताता हूँ, कुछ भी नही रहने आता है

कुछ भी नही रहता है
कुछ भी नही रह जाता है
कुछ भी नही रहने आता है
मैं बताता हूँ, कुछ भी नही रह पाता है।

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