Thursday, 30 May 2013

पदार्थ पर चर्चा हमें अनायास उत्तेजित कर डालती है, पदार्थ -दर्शन मात्र से हम सक्रिय हो जाते है,
पर यदि हमे कभी विचार क्षेत्र में कभी कोई झाँकने को भी कह दे तो--------------
स्कूल- कालेज बंक करके, माँ की दवा के पैसे से या किताबों के लिये मिले पैसों से सिनेमा, थियेतर ,नौटंकी, क्रिकेट, फुटबाल हमें खुब भाति है, जरदा, तम्बाकू, शराब बनाना, बेचना, पीना, पिलाना सब अच्छा है, भारी भीड़ जुटती है-नाच गाने के लिये- पर विचार हमें भाते ही नहीं
हम भावनाओं से अधिक जुड़ाव महसूस करते हैं, भावनाओं के मामले मे काफी सचेत और भावुक हैं पर तर्क, विचार, सार्थकता की तलाश की ओर हमारे कदम ही नहीं उठते।

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