Friday, 24 May 2013

दूसरा कौन है, सभी तो अपने हैं, प्रेम देने से प्रेम कहीं घटता है, न तुम्हारे हिस्से का प्रेम कहीं जायेगा, न बँटेगा। सभी को पूरा प्रेम ही मिलता है, टुकड़े प्रेम के होते ही नहीं, प्रेम सदैव संपूर्ण ही होता है, होता है तो है, नही तो नहीं, बीच मैं कुछ नहीं। प्रेम बाँटने वाले से इर्ष्या कैसी, उसे धमकाना कैसा, किसी को डरा कर न तो प्रेम- न हीं मान-सम्मान- कुछ भी नहीं पाया जा सकता। प्रेम का कोई समतुल्य है ही नहीं।

No comments:

Post a Comment