बड़ा चुगलखोर है यह। इसे छिपा कर जब जब मैं घुमा हूँ, कई बार जब इसे छोड़ कहीं आता हूँ ... तब तुमने भी मझे शायद ईंसान समझा। हो सकता है गलत समझ थी तुम्हारी। फिर मेरी फितरत करनी देख, शैतान या हैवान या अभी भी इंसान समझना चाहा। पर निगोड़ा नाम जैसे ही झाँका दरींचे से तुम, वे और यहाँ तक की मैं भी हिन्दू है, मुसलमान ही है समझ चुका था। मेरे आसपास इंसानी साया तक नहीं रहा नाम के आते ही वे जज्बात भी गुम थे। मेरा नाम ,ऐ दुनियावालों वापस ले लो बिना नाम के ही जी लूँगा भले ही एक संख्या रहूँ मजहब की कैद में चिन्दी-चिन्दी फट कर या फिर यूँ बँट कर तो नही रहूँगा। |
|
No comments:
Post a Comment