प्रकृति का संपूर्ण वास्तुशिल्प अत्यन्त समनुपातिक एवं सहज है,
चूःकि हमारी बुद्धि, हमारा मन और शरीर तुलनात्मक रूप से उतना सहज नहीं रह सका ,
प्रकृति के कारण नहीं , अपने कारण,
क्यौंकि हम स्वयं को प्रकृति के संपूर्ण हवाले नही कर पाते हैं,
अतएव हम अपनी उर्जा प्रकृति को समझने में,
कभी कभी लड़ने में,
प्रकृति को ही अपने अनुरुप बनाने में
अथवा अपनी उचित अवस्था की खोज मैं लगाने लगते हैं।
प्रकृति के सहज हवाले नहीं कर पाने की हमारी कृत्रिम असहजता या असफलता को ही हमने सभ्यता, पुरूसार्थ समझने की जो भूल की है वह अक्षम्य है।
चूःकि हमारी बुद्धि, हमारा मन और शरीर तुलनात्मक रूप से उतना सहज नहीं रह सका ,
प्रकृति के कारण नहीं , अपने कारण,
क्यौंकि हम स्वयं को प्रकृति के संपूर्ण हवाले नही कर पाते हैं,
अतएव हम अपनी उर्जा प्रकृति को समझने में,
कभी कभी लड़ने में,
प्रकृति को ही अपने अनुरुप बनाने में
अथवा अपनी उचित अवस्था की खोज मैं लगाने लगते हैं।
प्रकृति के सहज हवाले नहीं कर पाने की हमारी कृत्रिम असहजता या असफलता को ही हमने सभ्यता, पुरूसार्थ समझने की जो भूल की है वह अक्षम्य है।
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