कोई सुने न सुने , पुकारने से तो किसी ने कभी मना किया नहीं ,खड़े हो कर इंतजार करने से भी कोई भला कैसे रोक सकता है , जब मैं किसी से मजदूरी मांगता नहीं तो सार्वजनिक स्थानों की सफाई करने से भी मुझे कोई क्यों रोकेगा ,कूड़ा यथास्थान उठा कर रख देने से भी कोई नहीं रोकेगा ,अँधेरी रात में रह में एक दीया जलाने की कब मनाही है , अपनी और से चिट्ठी भी लिखने से ,भेजने से भी कोई क्यों रोकेगा यदि उस पर उचित डाक टिकट लगाई गई हो और कोई अनुचित बात न लिखी जाये .जब जबाब मांगता ही नहीं तो भला मेरी चिट्ठी से आपको क्या फर्क ,आप - पढ़िये या न पढ़िये -- इन सूनसान आम रास्तों को मैं बुहारता रहता हूँ ,धोता रहता हूँ ,एक बर्तन में पीने का सुद्ध पानी लिये बैठता रहता हूँ ,रात के पहले एक दीया जलाया करता हूँ - भोर होने पर उसे दुसरे दिन के लिये उठा रखता हूँ - कोई मनाही तो है नहीं .
बस मेरा मन लगा रहता है . चित्त प्रसन्न रहता है . बस इतना ही .
मैं तो बस पढ़ने में लगा रहना चाहता हूँ - कोई मुझे न भी पढ़ाना चाहे तब भी .पढ़ने की इच्छा ,प्रतीक्षा ,प्रयास ,आश पर तो कोई रोक है नहीं .
बस मेरा मन लगा रहता है .
बस मेरा मन लगा रहता है . चित्त प्रसन्न रहता है . बस इतना ही .
मैं तो बस पढ़ने में लगा रहना चाहता हूँ - कोई मुझे न भी पढ़ाना चाहे तब भी .पढ़ने की इच्छा ,प्रतीक्षा ,प्रयास ,आश पर तो कोई रोक है नहीं .
बस मेरा मन लगा रहता है .
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