हिमालय क्यूँ रोया।
पहाड़ सा धीर, सदा नीर
हिमालय क्यूँ रोया।
अपने चीर हरण से उकता गया
अपने नंगे बदन से शर्मा गया
द्यूत क्रीड़ा का पास न बन सका
या फिर धीरज चूक गया
जैसे को तैसा किया।
जो भी किया हिमालय तुमने
शायद मदमस्त मानव झकझौर दिया
... हमारा ही किया,हमें दिया
हम तुम्हें जान न सके
फकत एक पहाड़ नहीं हो तुम।
हिमालय क्यूँ रोया।
हिमालय क्यूँ रोया
पहाड़ सा धीर, सदा नीर
हिमालय क्यूँ रोया।
अपने चीर हरण से उकता गया
अपने नंगे बदन से शर्मा गया
द्यूत क्रीड़ा का पास न बन सका
या फिर धीरज चूक गया
जैसे को तैसा किया।
जो भी किया हिमालय तुमने
शायद मदमस्त मानव झकझौर दिया
... हमारा ही किया,हमें दिया
हम तुम्हें जान न सके
फकत एक पहाड़ नहीं हो तुम।
हिमालय क्यूँ रोया।
हिमालय क्यूँ रोया
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