Sunday, 7 September 2014

पत्तियों ने कड़ी धूप  में भोजन पकाया है .
नर्म रोएँ सी जड़ों ने पत्थरों को यों जगाया है
न दिखने वाली शिराओं ने दिनरात लगातार
सागर को ,हर पत्ते पत्ते तक पहुँचाया है

तब जाकर यह जीवन यूँ संवर पाया है !

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