Thursday, 11 September 2014


नहीं जानता, मुकद्दर में क्या लिखा है .
कुछ तो बचा के रख मेरे यार

जलजला गर आ ही गया तो
एक साये का एहसास तो रहे मेरे यार .

हर साँझ जब अँधेरा ले आती है
भोर का एहसास भी तो है , मेंर यार

कितने जुल्म झेले हैं इसके साये में .
इस भोर के एहसास को रख मेरे यार

No comments:

Post a Comment