महिलाओं ने भारत में जहाँ जहाँ और जिस जिस रूप में सरकारी काम संभाला है अथवा सरकारी काम संभाल रही हैं -चाहे वह आँगन बाड़ी सेविका हो , शिक्षिका हों , स्वास्थ्य स्वयंसेविका हो , पुलिस कांस्टेबल हो ,आई पी एस अधिकारी हो,न्यायिक जज हो , कलक्टर हो ,ट्राफिक पुलिस हो ,पोलियो टीकाकरण स्वयं सेविका हो ,मलिन बस्तियों तक जाकर परिवार कल्याण का संवाद पहुँचाने वाली स्वयं सेविका हो ,प्रधानाध्यापिका हो ,मिड दे मिल परिचारिका हो ,ग्रामीण क्षेत्र में स्थापित महिला सरकारी कर्मचारी या स्वयंसेविका हो - सभी ने मिल कर सरकार का एक अधिक सकारात्मक स्वरूप तो ग्रामीण जनता के पास प्रस्तुत किया ही है .
पहले तो सरकार को ह्म आप ,पुराका पूरा सर्वसाधारण समाज - सभी डंडे वाले चौकीदार, निर्मम पुलिस ,धौंस दिखाने वाले तनी त्योंरियों वाले पुरुष अधिकारीयों के मार्फत ही जानते थे - हँसते हुए सहायता करने वाला सरकारी आदमी और सहायता करने वाली सरकार कहाँ मिलती थी ?
राजनीति में भी महिला -भागीदारी यदि बढ़ जाये तो गुणात्मक परिवर्तन शीघ्र ही दिखे गा .
कम से कम शालीन संवाद तो हो ही सकेगा ,लैंगिक अनुशासन बढेगा ,लैंगिक हिंसा कम होगी ,महिला स्वयं चलायमान होगी .
कुछ कुछ हुआ है ,कुछ हो रहा है , इतमिनान से होने दीजिये, परिवर्तन रुके नहीं .
सरकारी आतंक और डंडे के अलावा भी सरकार में कुछ है , इसे बताने के लिये महिलाएं सर्वोत्तम माध्यम हैं ,वे सक्षम सार्थक वातावरण के निर्माण में ,अधिक कारगर होंगी .
सरकार केवल डर ही नहीं सहयोग भी है ,गांवों तक यह मैसेज केवल द्वारा महिलाओं तक महिलाओं के लिये फैलाया जाना जरुरी है. इसके लिये शीर्ष पर भी महिला -पक्षधर होने चाहिये - यदि सरकार की सकारात्मक छवि बनानी है ,ग्रामीण असंतोष से लड़ना है ,भीतरी आतंकवाद से भिड़ना है , पारस्परिक अन्याय से लड़ना है तो सरकार के शांतिदूत महिलाओं को ही बनाना होगा.
पहले तो सरकार को ह्म आप ,पुराका पूरा सर्वसाधारण समाज - सभी डंडे वाले चौकीदार, निर्मम पुलिस ,धौंस दिखाने वाले तनी त्योंरियों वाले पुरुष अधिकारीयों के मार्फत ही जानते थे - हँसते हुए सहायता करने वाला सरकारी आदमी और सहायता करने वाली सरकार कहाँ मिलती थी ?
राजनीति में भी महिला -भागीदारी यदि बढ़ जाये तो गुणात्मक परिवर्तन शीघ्र ही दिखे गा .
कम से कम शालीन संवाद तो हो ही सकेगा ,लैंगिक अनुशासन बढेगा ,लैंगिक हिंसा कम होगी ,महिला स्वयं चलायमान होगी .
कुछ कुछ हुआ है ,कुछ हो रहा है , इतमिनान से होने दीजिये, परिवर्तन रुके नहीं .
सरकारी आतंक और डंडे के अलावा भी सरकार में कुछ है , इसे बताने के लिये महिलाएं सर्वोत्तम माध्यम हैं ,वे सक्षम सार्थक वातावरण के निर्माण में ,अधिक कारगर होंगी .
सरकार केवल डर ही नहीं सहयोग भी है ,गांवों तक यह मैसेज केवल द्वारा महिलाओं तक महिलाओं के लिये फैलाया जाना जरुरी है. इसके लिये शीर्ष पर भी महिला -पक्षधर होने चाहिये - यदि सरकार की सकारात्मक छवि बनानी है ,ग्रामीण असंतोष से लड़ना है ,भीतरी आतंकवाद से भिड़ना है , पारस्परिक अन्याय से लड़ना है तो सरकार के शांतिदूत महिलाओं को ही बनाना होगा.
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