Saturday, 19 July 2014

भारतीय ठेठ आदिवासी इलाके में जाकर देखें - अभी भी पूरी की पूरी जमात झूठ बोलना ही नहीं जानती , आवश्यकता से अधिक न तो खाना जानती है न पहनना , संग्रह की आवश्यकता ही नहीं महसूस करते , लालच इन्हें आज भी छू तक नहीं गया है , अहंकार तो है पर दूसरे किस्म का , क्रोध तो है पर षड्यंत्र की श्रेणी का नहीं , स्वतः उतपन्न लोभ , अहं , क्रोध ,काम तो है पर आयातित नहीं , चेष्टा पूर्वक पैदा किया नहीं , पढ़ाया गया नहीं।
झूठ पढ़ाया सिखाया ज्ञान है , कुटिल ज्ञान है , अनावश्यक कुटिलता है।
अभी भी आदिवासी क्षेत्रों में यह कुटिलता पूरी तरह नहीं पहुंची है।
उन क्षेत्रों में बाहरी लोग इस कुटिलता को आदिवासी इलाके में अपने लोभवश , स्वार्थ में प्रतिष्ठित कर रहें है।
जो जितना कुटिल वह उतना   सभ्य।
फेसबुक पर इसे पढ़ने वालों को सहज विश्वास ही नही होगा की एक पूरी जमात आज भी झूठ की कल्पना तक नहीं कर पाती।
और तुर्रा यह कि हम उन्हें असभ्य पिछड़ा कहते  हैं।
वे आज भी निर्मल हैं।
कहीं गंगा की तरह हम इन्हे दूषित कर अपना ही अहित तो नहीं कर रहे।
उनसे सिखने की जगह हम उन्हें सीखा रहे हैं जब की हमारे पास कुटिल  लोभी अपसंस्कृति एवं सभ्यता के अलावा है ही क्या।
पर क्या हम आप इस सच को मानेंगे भी ?

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