अनायास हुआ अपमान जो शायद सुचिंतित नहीँ होता, वह कम बेसी बर्दास्त हो ही जाता है।
जानबूझ कर किया गया अपमान न तो बर्दास्त होता है, न कुछ किये बनता हैं, मन विद्रोह करने को तत्पर हो उठता है, विद्रोह को मार्ग न मीले तो मन के अंदर प्रवेश कर विस्फोट कर डालता हैं।
कष्ट हुआ नहीं अखरता , दीया गया अखर हीं जाता हैं।
ईर्ष्या चुभती है।
इन सब के बाद भी अपने तो अपने ही रहेँगे।
नाखून अँगुलियों से कभी अलग थोड़े ही हुये हैं।
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