Saturday, 12 July 2014

अनायास हुआ अपमान जो शायद सुचिंतित नहीँ होता, वह कम बेसी बर्दास्त हो ही जाता है।

 जानबूझ कर किया गया अपमान न तो बर्दास्त होता है, न  कुछ किये बनता हैं, मन विद्रोह करने को तत्पर हो उठता है, विद्रोह को मार्ग  न मीले  तो  मन के अंदर प्रवेश कर विस्फोट  कर डालता हैं।

कष्ट हुआ  नहीं अखरता , दीया गया अखर हीं जाता  हैं।

अपनों का दिया  अपमान, कष्ट अधिक सालता हैं।

ईर्ष्या चुभती है। 

इन सब के बाद भी अपने तो अपने ही रहेँगे।

नाखून अँगुलियों से कभी अलग थोड़े ही हुये हैं। 

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