Tuesday, 8 July 2014

तुम मेरा क्या ही बना दोगे. बनना या बिगड़ना तो मेरे परिश्रम का अक्श भर है जिसमे प्राण तो वह ही देता या नहीं देता है - तुम कुछ भी नहीं कर सकते -चाह कर भी नहीं.
तुम मुझ तक या मेरे प्रयासों तक या विचारों तक मेरे बिना चाहे नहीं पहुँच सकते . यह जो तुम्हारा तस्किरा मैं कर रहा हूँ , बस इस लिये की अभी मैं उसकी आज्ञा से तुम्हे इस पोस्ट में आने देरहा हूँ ,तुम नहीं आये , न ही तुम आ ही सकते थे ,तुम तो ले आये गये हो .
आज तक मैनें एक भी ईंट टेढ़ी रखी ही नहीं है ,उल्टा चला ही नहीं हूँ , बस इतना संतोष रहा है .

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