आपने शहद तो देखा होगा। मधुमक्खियों के छत्ते भी देखे ही होंगे। मधुमक्खियों को आते जाते भी देखा ही होगा। पर क्या किसी मधुमक्खी को फूल से उड़ते समय शहद ले कर जाते देखा है। मधुमक्खियाँ फूल के जीवन का अभिन्न अंग है। प्रकृति में सब कुछ परस्पर सम्बन्धित है। मधुमक्खियों का सतत परिश्रम ही शहद बनने की शर्त है।
लगभग यही स्थिति धन के सृजन के लिए भी है।
यह शोषण और शोषक की कहानी से और उसी थियरी मे उलझने से काम नहीं चलेगा।
लगातार जिम्मेवारी और खतरा उठा कर काम करना होगा,परिश्रम करना होगा। ऐसा नहीं हो सकता की सफलता के मीठे फल आप खाइये और असफलता की कडुआहट दूसरों के लिए छोड़ दें। यदि आपने ऐसा करने की कोशिश की तो आप श्री ,समृद्धि ,संपत्ति ,धन ,साधन सेवंचित रह जायेंगे।
खतरे उठाना सीखिए ,जिम्मेवारी लेना सीखिए। असफलता को बर्दाश्त करना सीखिए। केवल शाहद के छत्ते को देख कर मधुमक्खियों को चोर कह देने से कम नहीं चलेगा।
आप मधु का छाता जला कर ,मधुमक्खियों को भगा कर, छाता तोड़ कर पाव ,सेर, पसेरी शहद एक बार ले जा सकते हैं।
इससे अच्छा है,हम आप और सभी मधुमक्खी वृत्ति अपना लें।
फूलों का भी भला ,आप का भी भला ,समाज का भी भला। धन से मन ही मन प्रेम करना और धनी को गाली देना,यह कहाँ का न्याय है।
वैसे धन आज के सन्दर्भ में उतने पवित्र ढंग से नहीं एकत्र किया जाता जितने पवित्र ढंग से मधुमक्खियाँ शहद एकत्र करती है।
अनेक धन पशु है ,जिन्होंने सारे अनुचित माध्यमों से धन बना डाला है।
उनसे आपका और मेरा विरोध होना ही चाहिए।
पाप का धन मेरा हो या आपका ,वह है तो आखिर पाप का। पापी मन मेरा हो या आपका वह है तो पापी ही।
पाप पाप ही है। ऐसा नहीं हो सकता कि दूसरे का पाप पाप और मेरा पाप माफ़ , "सब चलता है , क्या करे मजबूरी है ".
अपने पाप को मजबूरी की चादर में मत लपेटिये। अपने पाप को अनजाने में हुआ पाप कह कर बचने की चेष्टा मत कीजिये। पाप ,पाप ही है।
गुरु नानकदेव जी ने जिस खून वाली रोटी को दिखलाया था ,वह जब भी ,जहाँ भी मिले ,उसे कुत्ते तक को मत खाने दें। ऐसी रोटी को हाथ तक न लगाये। यह सर्वनाश कर देगी।
ऐसी खुनी रोटी से भूखा सोना भला ,दरिद्रता भली। भूखा पेट भला।
सही है , मैं जनता हू ,भूख में बड़ी ज्वाला होती है।
पर भूख पाप का औचित्य सिद्ध नहीं कर सकती।
चाहे जो भी हो ,लोभ को मैं सबसे बड़ा पाप समझता हुँ। भूख कि ज्वाला भी मुझे लोभ मार्ग पर प्रवृत नहीं कर सकती।
वैसे मैं संकल्प कर सकता हुँ ,दावा नहीं। सदैव भय बना रहता है।
वैसे विवशता को प्रणाम ही करना उचित होगा।
लगभग यही स्थिति धन के सृजन के लिए भी है।
यह शोषण और शोषक की कहानी से और उसी थियरी मे उलझने से काम नहीं चलेगा।
लगातार जिम्मेवारी और खतरा उठा कर काम करना होगा,परिश्रम करना होगा। ऐसा नहीं हो सकता की सफलता के मीठे फल आप खाइये और असफलता की कडुआहट दूसरों के लिए छोड़ दें। यदि आपने ऐसा करने की कोशिश की तो आप श्री ,समृद्धि ,संपत्ति ,धन ,साधन सेवंचित रह जायेंगे।
खतरे उठाना सीखिए ,जिम्मेवारी लेना सीखिए। असफलता को बर्दाश्त करना सीखिए। केवल शाहद के छत्ते को देख कर मधुमक्खियों को चोर कह देने से कम नहीं चलेगा।
आप मधु का छाता जला कर ,मधुमक्खियों को भगा कर, छाता तोड़ कर पाव ,सेर, पसेरी शहद एक बार ले जा सकते हैं।
इससे अच्छा है,हम आप और सभी मधुमक्खी वृत्ति अपना लें।
फूलों का भी भला ,आप का भी भला ,समाज का भी भला। धन से मन ही मन प्रेम करना और धनी को गाली देना,यह कहाँ का न्याय है।
वैसे धन आज के सन्दर्भ में उतने पवित्र ढंग से नहीं एकत्र किया जाता जितने पवित्र ढंग से मधुमक्खियाँ शहद एकत्र करती है।
अनेक धन पशु है ,जिन्होंने सारे अनुचित माध्यमों से धन बना डाला है।
उनसे आपका और मेरा विरोध होना ही चाहिए।
पाप का धन मेरा हो या आपका ,वह है तो आखिर पाप का। पापी मन मेरा हो या आपका वह है तो पापी ही।
पाप पाप ही है। ऐसा नहीं हो सकता कि दूसरे का पाप पाप और मेरा पाप माफ़ , "सब चलता है , क्या करे मजबूरी है ".
अपने पाप को मजबूरी की चादर में मत लपेटिये। अपने पाप को अनजाने में हुआ पाप कह कर बचने की चेष्टा मत कीजिये। पाप ,पाप ही है।
गुरु नानकदेव जी ने जिस खून वाली रोटी को दिखलाया था ,वह जब भी ,जहाँ भी मिले ,उसे कुत्ते तक को मत खाने दें। ऐसी रोटी को हाथ तक न लगाये। यह सर्वनाश कर देगी।
ऐसी खुनी रोटी से भूखा सोना भला ,दरिद्रता भली। भूखा पेट भला।
सही है , मैं जनता हू ,भूख में बड़ी ज्वाला होती है।
पर भूख पाप का औचित्य सिद्ध नहीं कर सकती।
चाहे जो भी हो ,लोभ को मैं सबसे बड़ा पाप समझता हुँ। भूख कि ज्वाला भी मुझे लोभ मार्ग पर प्रवृत नहीं कर सकती।
वैसे मैं संकल्प कर सकता हुँ ,दावा नहीं। सदैव भय बना रहता है।
वैसे विवशता को प्रणाम ही करना उचित होगा।
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