लगभग चालीस वर्षों का सक्रिय जीवन , मैंने देखा है साक्षात् 'अपनों ' के हाथों अपनों का अपमान कैसी तीब्र ज्वाला देता है।
जी करता है - यहीं अभी धरती फट जाये और मैं धरती में समा जाऊं पर यह अपमान दुश्मन का भी न हो।
जी करता है - यहीं अभी धरती फट जाये और मैं धरती में समा जाऊं पर यह अपमान दुश्मन का भी न हो।
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