Thursday, 26 July 2018

झूठ बड़ा भारी होता है , एक तो वह खुद नहीं चला करता ,उसे चलाना पड़ता है , हर वक्त हिफाजत करनी होती है , जाने कब खुद गच्चा खा जाये , पकड़ा जाये : दूसरे उसके साथ चलना -रहना भी मुश्किल , खुद पर यह झूठ लद जाया करता है , खुद तो चलना मुश्किल - झूठ के साथ चलने में पसीना आ जाता है - खुद अपने ही पाले  झूठ को  याद कर पहचानते रहना मुश्किल काम , पकड़े गए तो झूठ से पहले झूठ को पालने वाला गया काम से।
सच हल्का फुल्का , कभी पहचान का संकट नहीं , सरे आम खुद ही घूमते फिरते सब से मिलते परिचय करते चलता है।  सच पैदा होते ही मुनादी की तरह   खुद ही कूदने फाँदने लगता है , बड़ा निडर , बेख़ौफ़ ,अपने आगे पीछे भीड़ हो तो भी सही ,अकेले भी रहना पड़े तो भी सही। हारता वह कभी नहीं।  कोई उसे पकड़े इसकी कभी कोई जरूरत ही नहीं।  वह  तो सबके सामने छाती ठोक कर आता है।  कभी कभार शरारत से उसे परेशान किया जाता है। उसे न उम्र का संकट न उसे याद  की परेशानी। उसके साथी संगतिया कभी कभी कुछ अधिक ही परेशान होते है।
झूठ के साथी संगतिया बड़े जल्दी थोड़े से समय के लिये फूलते फलते दीखते हैं।  पर बहुत थोड़े समय के लिए।
झूठ अक्सर खुद ही अपने अंत को प्राप्त होता है।
सत्य सदैव अम्र हो रहने आया है। 

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