Monday, 30 July 2018

पलट कर जो देखा तो सब कुछ वही का वही।
कुछ भी तो नहीं बदला था। ज्यों का त्यों वह यादों वाला ताखा, अरसे से अनछुआ , पर न जाने क्यों कहीं से न बासीपन , न धूल गर्दा, मानो अभी अभी सब कुछ साफ कर मेहमानों के आने के ठीक पहले सफाई से सजाया गया है।एकदम से ताज सरीखा। पर यादें तो यादें ही हैं। कितनी भी ताजा रखो, जैसे जैसे पुरानी पड़ती जाएगी, पकड़ने वाले-पहचानने वाले कि पकड़ -पहचान में आ ही जाएगी।

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