Tuesday, 21 March 2017

प्रेम और प्यार में दया , करुणा  ,एहसान , उपकार का कोई स्थान नहीं होता।  प्रेम समर्पण है , परस्पर स्पंदन है पर विनिमय- लेनदेन -हिसाब-किताब नहीं।
यह त्याग का अधिकार है। मुझे अधिकार है आपके प्रति त्याग करने का।  प्रतिफल का तो कोई विचार ही नहीं।  प्रेम में प्रतिफल का  अनुपस्थित  है।
प्रेम में दाता  भाव नहीं आता।  कोई उपकृत या उपकारी होता ही नहीं।  कोइ दयालु  या दया का पात्र है ही नहीं। यहां कृपालु कोइ नहीं , न ही कृपाकांक्षी।
प्रेम एक सम्पूर्ण भाव है।  सब कुछ इसी में आ कर समा सकता है , सब कुछ इसी से निकल ,उग  सकता है। यह है तो है , नहीं है तो नहीं है।  थोड़ा प्रेम , कम प्रेम , अधिक प्रेम , आ रहा है प्रेम , जा रहा है प्रेम - यह सब प्रेम की दुनिया में नहीं है।  है तो है , नहीं तो नहीं।
प्रेमी ही प्रेम को जान -पहचान सकता है।
जिसने प्रेम रस चख लिया वह बस उस के  आलावा कोइ और रस चखने के लायक रह ही नहीं गया।

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