Monday, 21 December 2015

गोधूलि बेला में सूरज को उगने का आग्रह कर सूरज को सम्मान देने वाले , हे प्रकाशकामी, हिम्मत रख. वह ग्यान दीप जो तुम्हारी हथेली पर है वह तुम्हे रौशनी देगा ही .
अब भी मुझे और उगने , फलने , फूलने ,फुदकने , जनमने का तुम्हारा आग्रह मेरी तपस्या के प्रति तुम्हारा लगाव है , मेरे दिये का शायद प्रतिदान है या मुझे नये तरह से उकसाने का तुम्हारा प्रयास है,
धन्यवाद्, नव किसलय , तुम्हे _()_
पर नये प्रभात , बालारुण, नयी लालीमा के लिये तो जाना ही पड़ेगा.
फिर कितना उगुँगा ?
कुछ तो यथेष्ट भी होता ही होगा.
कहीं तो बस भी करना ही होगा.

  • हा़ँ इतना आस्वस्त करना फिर चाहूँगा कि सारी की सारी रौशनी तुम्हारी !

No comments:

Post a Comment