Monday, 21 December 2015

मुझे राज -दरबार के नियम कायदे नहीं आते थे.मैं विरुदावली गाने-बजाने का अभ्यस्त नहीं था.राजा के सामने जाने के पहले अपनी पगडी़ उतार कर हाथ में ले लेनी होती है , और सामने आ जाने पर वह पगड़ी राजा के चरणों में रख देनी होती है , यह मैं बहुत बाद में जान सका, और जब जाना तो यह तरीका गले नहीं उतरा.
और हाँ, मैं सैनिक धर्म भी सही सही निबाह न सका. निर्दोषों को राजाग्या के अनुरुप वधशाला पहु़चा न सका.
राजमार्ग पर चलने का अभ्यासी नहीं था. नहीं जानता थ् राजमार्ग पर यात्रा के दौरान संवेदन हीन हो जाना चाहिये और केवल राजमुकुट को ही देखना चाहिये, रास्ते में निर्दौष की ह्त्या होती ही है, यह मैं आज तक पचा नहीं पाया.

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