Sunday, 13 December 2015

हर प्यादा जो वजीर बनने की यात्रा पर चला है उसे सादर समर्पित.
वे नहीं चाहते कि वे मेरे नाम-काम से जाने पहचाने जाये,
वे कहीं न कहीं मुझे अपने पीछे ही खड़ा देखना चाहते है.
न जाने क्यों उन्हें मेरे गले में पुष्प-हार, हाथों मे बुके, मेरी प्रशस्ति गाता जन समुह, मेरे लिये लिखे गये श्लाघ्य रिपोर्ट, श्लोक आदि कष्ट दे रहें है.
वे ईश्वरीय कृपा , मेरी मेहनत तथा साक्षात् दिख रहा सत्य , सब को नकारने के लिये एक जुट हो रहें हैं. एक भारी मंत्रणा चल रही है.
उन्हें कष्ट इस बात का बार बार है कि यह सब उन सब के इतने विरोध के बाद भी कैसे और क्यों होते ही जा रहा है , यह नित्य नया किसलय नर्तन, विकास , नये पत्ते, और अब तो फल फूल की भी सारी संभावना . यह सब वे पचा नहीं पा रहे. मेरे बढ़ते यश से वे आतंकित से हैं .
मैं जानता हूँ वे अभी और भी दुरःभि -षड़यन्त्र करने से बाज नहीं आयेंगे .
असल में बड़प्पन को , वे अपने घर की कनीज़ समझते हैं ,
सारा श्रेय उनका मानों खरीदा हुआ है.
उनके लिये ईज्जत ने उन्हीं की घर की रखवाली करने का अमरपट्टा लिख दिया है.
उनका बस चले तो वे शतरंज के नियम ही बदल देंगें- कभी कोई प्यादा शह -बचते बचाते भी अपने पुरुषार्थ से भी वजीर नहीं बन सके .
खैर अब तो सैकड़ों की दुआएँ मेरे साथ हैं .
बस प्रार्थना इतनी ही करूँगा कि जो मुझे भोगना पड़े, उस सिलसिले का यहीं अन्त हो जाये.
इस सिलसिले की तपिश आप लोगों तक प्रकारान्तर से भी न पड़े.
लगता है एक नया विहान होने के पहसे अन्धकार आखिरी बार फिर एक बार गहरा कर अपने मन की निकाल लेना चाहता है.
पर परमात्मा और मेरा किया तथा आप सब का मौरल सपो्र्ट भी तो है न.
जो होगा अच्छे के लिये ही होगा.
मेरे पास इन दो हाथों के और अपने किये के अलावा कुछ भी नहीं.
पर सिर कटा लूँगा , आप सब का बाल बाँका न होने दिया है , न होने दूँगा.
पर हाँ , रहीम के ब्यंग बाण, तुलसी के उलाहने तो मुझे ही सुनने पड़ेगें
तब तक इन्तजार किजिये .
मैं भागने से रहा. सामना तो करूँगा, वह भी केवल अपनी किसी को हानि पहुँचाये बिना, बिना चरण-वंदना किये.
मुझे प्रार्थना करने से तो कोई नहीं रोक देगा. पुरुषार्थ से तो काई नहीं रोक देगा.
प्रभुतावाले के नियम कायदे मुझे तो अभी तक कम ही समझ में आये हैं.
हर प्यादा जो वजीर बनने की यात्रा पर चला है उसे सादर समर्पित.

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