बँचते -बँचते रह गयी कितनी कहानियाँ, कितने उपन्यास रह गये बिन पढ़े- पढ़ाये,
कितने पत्थर रह गये अनगढ़ बिन तराशे, कितने दिये रह गये बिन जले या जलाये
कितने पत्थर रह गये अनगढ़ बिन तराशे, कितने दिये रह गये बिन जले या जलाये
कितने गीत कभी लिखे ही नहीं गये, अनलिखे कितने रहे, रहे बिन गाये या गवाये
कितने फूल कभी खिले ही नहीं, न चूने ही गये, रह गये कितने बिन चढ़े या चढ़ायै
कितने फूल कभी खिले ही नहीं, न चूने ही गये, रह गये कितने बिन चढ़े या चढ़ायै
बिना भोर के ही आवारा घूमता रहा सूरज, बिना साँझ को साथ लिये ही लौट चला
बिना चाँदनी जब चाँद नजर आया, नाराज हो तारों का काफिला भी यों लौट चला
बिना चाँदनी जब चाँद नजर आया, नाराज हो तारों का काफिला भी यों लौट चला
बिना खेले बूढ़ा होता जाता बचपन, बिना सीखे, बिना सिखाये चला जा रहा यौवन
बिना बाँटे यदि यूँ ही जाना था तुझे?बिना बोले !बिना चले !क्यूँ चला जा रहा यौवन ?
बिना बाँटे यदि यूँ ही जाना था तुझे?बिना बोले !बिना चले !क्यूँ चला जा रहा यौवन ?
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