Monday, 21 December 2015

अपने बचपन को बचपन सा ही जियो यारों .
बचपन की कुछ यादें आज भी अत्यन्त ब्यस्तता और अनेकानेक दायित्वों के बोझ के बीच जब कभी अकेले में भी याद आ जाती है तो चेहरे से तनाव घट तो जरूर जाता है औेर एक प्रसन्नता आ ही जाती है.
वे यादें अब जो कुछ दे जाती है वह कोइ भी कभी भी अब तो मुझे नहीं ही दे सकता.,
बड़प्पन बोझ देता है, अकेलापन देता है, संतोष भी देता है, ऊँचाई देता है , विस्तार देता है, लक्ष्य देता हे , मकसद देता है
- पर बचपन का चुलबुलापन, निश्छलता ,बेफिक्री ,यह सब बहुत याद आते रहते हैं
और कोई इन्हें भूल भी नहीं ही पाता पर इनको बड़प्पन के साथ बस खोजते ही रह जाता है.
अपने बचपन को बचपन सा ही जियो यारों .
नहीं तो मेरे जैसे अपने बड़प्पन के बोझ तले अकेले रह जाओगे ,
यादें भी साथ निभाने को नहीं आयेगी .
बचपन और बड़प्पन को साथ साथ खड़ै होने , एक दूसरे को सरे-आम पहचानने में शर्म जो आती है.
अपने बचपन को बचपन सा ही जियो यारों

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