Sunday, 13 December 2015

सोचता हूँ , यह अनन्त बताया जा रहा आसमान मेरे किस काम का,
इस समन्दर की अनन्त गहराई, गर्भ के अनन्त रत्न मेरे किस काम के .
आसमान में मै घर बना रह तो सकता नहीं,समन्दर का पानी है खारा
अब तो सूरज है , सुनता हूँ, दिखना बन्द, धुप रौशनी मेरे लिये न रही

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