सितारों की चादर ओढ़े, इतराती रात उतर आई है,
नन्हें दीये का हौसला ,पेशानी पसीने से भर आई हे।
सरी रात जगा रहा दीया, अन्धेरा चैन से सो नहीं पाया,
दीये का हौसला देख, सितारों की चादर समेट नहीं पाया।
नन्हीं जान दीया, नन्हा है, पर जीता है अनोखी शान से,
अन्धेरे को चीरता,डर को भी डराता,जलता है शान से।
आँधी जो आती है, धमका जाती,बुझ वो कभी जो जाता है
... तब भी बुझदिलों की तरह नहीं, धुँआ दूर तलक जाता है।
अपना कलेवर जलाया, खूब जला, जलता रहा, रौशनी के लिये
जब तक जला, खूब छकाया अन्धेरे को,तुम्हें देने रौशनी के लिये।
नन्हें दीये का हौसला ,पेशानी पसीने से भर आई हे।
सरी रात जगा रहा दीया, अन्धेरा चैन से सो नहीं पाया,
दीये का हौसला देख, सितारों की चादर समेट नहीं पाया।
नन्हीं जान दीया, नन्हा है, पर जीता है अनोखी शान से,
अन्धेरे को चीरता,डर को भी डराता,जलता है शान से।
आँधी जो आती है, धमका जाती,बुझ वो कभी जो जाता है
... तब भी बुझदिलों की तरह नहीं, धुँआ दूर तलक जाता है।
अपना कलेवर जलाया, खूब जला, जलता रहा, रौशनी के लिये
जब तक जला, खूब छकाया अन्धेरे को,तुम्हें देने रौशनी के लिये।
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