खोलते, बन्द करते,ढक कर रख देते
बार बार अपनी ही किस्मत को,
क्या और क्यों टटोलते हो इधर-उधर
बन्द आँखों से कुछ मिलने वाला नहीं
बंधी हुई मुट्ठी मै कुछ नहीं समाता
इसके लिये पहले मुट्ठी खोलनी पड़ती है
हथेली एक बार फैलानी पड़ती है
शरीर की पोर पोर जब टूट चूकि होती है
लगता है साँस अब छूट चुकी होती है
तब, पूरी ताकत लगा, निर्ल्लज्ज हो
फैली हुई हथेली समेट मूट्ठी बना लो
पकड़ लो समय को,चूक रही साँस को
किस्मत को नहीं , बस एक और प्रयास को
देखो किस्मत स्खलित वसना सी
खुद ब खुद चली आयेगी अभिरास को
किस्मत दुतकार दिया गया जीव है
खोजता फिर रहा मिहनत का एक आसरा
अपमानित हुई नंगी किस्मत भी ढ़ूढ़ती
प्रण सिद्ध कृष्ण-स्पर्शमुट्ठी बाँधते इन्सान का
बार बार अपनी ही किस्मत को,
क्या और क्यों टटोलते हो इधर-उधर
बन्द आँखों से कुछ मिलने वाला नहीं
बंधी हुई मुट्ठी मै कुछ नहीं समाता
इसके लिये पहले मुट्ठी खोलनी पड़ती है
हथेली एक बार फैलानी पड़ती है
शरीर की पोर पोर जब टूट चूकि होती है
लगता है साँस अब छूट चुकी होती है
तब, पूरी ताकत लगा, निर्ल्लज्ज हो
फैली हुई हथेली समेट मूट्ठी बना लो
पकड़ लो समय को,चूक रही साँस को
किस्मत को नहीं , बस एक और प्रयास को
देखो किस्मत स्खलित वसना सी
खुद ब खुद चली आयेगी अभिरास को
किस्मत दुतकार दिया गया जीव है
खोजता फिर रहा मिहनत का एक आसरा
अपमानित हुई नंगी किस्मत भी ढ़ूढ़ती
प्रण सिद्ध कृष्ण-स्पर्शमुट्ठी बाँधते इन्सान का
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