Monday, 22 July 2013

रुमानीयत के लिये सारी जिन्दगी पड़ी है
फुदकने मे लिये,उड़ने के लिये, हड़बड़ी कैसी
सावन को, बहारों को, मौज -मस्ती को
फुरसत में इतमिनान से बुला लिया जायेगा।

अभी तो जिन्दगी को सज लेने दो,जवाँ तो होने दो,
जहाँ तहाँ फटी जिन्दगी मिहनत से सी लेने दो,
जवाँ होने के पहले इस जिन्दगी को पूरा जी लेने दो,
सजी जिन्दगी रही, फटी न रहे ,तो मेरी मान लेना।



साठ में आठ का नटखट बचपन चला ही आता है
पचपन में भी बचपन , नाचता, गाता ,इतराता है
सत्तर में भी सत्रहवाँ सावन, फगुआ छा ही जाता है।

जो सम्भल गया सो आगे फूलता फलता ही जाता है।

रूमानियत के लिये जिन्दगी कब छोटी पड़ी है
संवारी हो थाम कर जो जिन्दगी, बहार का क्या
जब बुला लिया दिल से तो कदमों पे सजी खड़ी हे
फुरसत में इतमिनान से बुला लिया ,बहार आ पड़ी है 

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