तो अब तो फेसबुक धोबीघाट बन गया।
फेसबुक ने दो-चार सालों में ही फेसबुक फ्रेन्ड पैदा किये।
फिर पैदा किये फेसबुक एडिक्टेड।
कालान्तर में फेसबुकजीवी धरा पर आये।
फैसबुक लव,वीकनेस आती गई।
... इसी तरह आई इसी श्रेणी की प्रतिद्वन्दिता।
फेसबुक इगो अब देखने को अधिक मिलता है।
अब जब से पूरानी पीढ़ी भी डरते-डराते फेसबुक पर आ ही गयी तो ऊनके साथ उनका अहं ,उनकी बुद्धिजीविता भि फेसबुक पर दिखती हे।
उनके पोस्ट पठनीय ही नहीं संग्रहणीय भी होते हैं।
पर अब उनकी पारस्परिक प्रतिद्वन्दिता, अहं का टकराव, झगड़ा,रगड़ा, रुसना,मुँह फुलाना ,मान मनौव्वल भी फेसबुकपर दिखता है।
फेसबुक पर अब तो हमारे आपके गन्दे व्यवहार को धोने-धुलाने का रिवाज आम हो चला है।
तो अब तो फेसबुक धोबीघाट बन गया।
फेसबुक ने दो-चार सालों में ही फेसबुक फ्रेन्ड पैदा किये।
फिर पैदा किये फेसबुक एडिक्टेड।
कालान्तर में फेसबुकजीवी धरा पर आये।
फैसबुक लव,वीकनेस आती गई।
... इसी तरह आई इसी श्रेणी की प्रतिद्वन्दिता।
फेसबुक इगो अब देखने को अधिक मिलता है।
अब जब से पूरानी पीढ़ी भी डरते-डराते फेसबुक पर आ ही गयी तो ऊनके साथ उनका अहं ,उनकी बुद्धिजीविता भि फेसबुक पर दिखती हे।
उनके पोस्ट पठनीय ही नहीं संग्रहणीय भी होते हैं।
पर अब उनकी पारस्परिक प्रतिद्वन्दिता, अहं का टकराव, झगड़ा,रगड़ा, रुसना,मुँह फुलाना ,मान मनौव्वल भी फेसबुकपर दिखता है।
फेसबुक पर अब तो हमारे आपके गन्दे व्यवहार को धोने-धुलाने का रिवाज आम हो चला है।
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फिर पैदा किये फेसबुक एडिक्टेड।
कालान्तर में फेसबुकजीवी धरा पर आये।
फैसबुक लव,वीकनेस आती गई।
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फेसबुक इगो अब देखने को अधिक मिलता है।
अब जब से पूरानी पीढ़ी भी डरते-डराते फेसबुक पर आ ही गयी तो ऊनके साथ उनका अहं ,उनकी बुद्धिजीविता भि फेसबुक पर दिखती हे।
उनके पोस्ट पठनीय ही नहीं संग्रहणीय भी होते हैं।
पर अब उनकी पारस्परिक प्रतिद्वन्दिता, अहं का टकराव, झगड़ा,रगड़ा, रुसना,मुँह फुलाना ,मान मनौव्वल भी फेसबुकपर दिखता है।
फेसबुक पर अब तो हमारे आपके गन्दे व्यवहार को धोने-धुलाने का रिवाज आम हो चला है।
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