एक समुन्दर इतना उफान मारता रहा
गरजता रहा रह रह कर
इतना कुछ अपने अंदर लिए
इतना गहरा ,इतना फैला
पर किसी को मेरा यह समन्दर
न दिखा
न सुनाई दिया
यह मेरे भी अन्दर था
मुझे ही न दिखा
न सुनाई दिया।
गरजता रहा रह रह कर
इतना कुछ अपने अंदर लिए
इतना गहरा ,इतना फैला
पर किसी को मेरा यह समन्दर
न दिखा
न सुनाई दिया
यह मेरे भी अन्दर था
मुझे ही न दिखा
न सुनाई दिया।
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