Monday, 28 December 2020

 मेरे सीनियर ऐडवोकेट दुधेश्वर बाबू को पता चल गया की आज मर्डर के एक केस को करते हूए मै एक वरीय अधिवक्ता से लगभग लड़ ही गया और बाद में कचहरी के उपद्रवी तत्वों ने राईफ्ल ले मुझे घेर लिया था, धमकी भी दी थी।

उनको पता चला कि यद्यपि घटना को मैं बरदास्त कर ले गया पर अन्दर से डर गया हुँ।

वे सीट पर आये। समझाया। एकाएक दोनो हाथ गरजना मोड मे उठा ललकारने लगे - जाओ, बाजार में कपड़ा बेचो, बर्तन बेचो, हल्दी बेचो, पिद्दी सा फेफ्ड़ा लेकर क्रिमिनल ट्रायल कोर्ट मे वकील नहीं बन सकते। उनकी आँख लाल हो गई। वे मुझे अपने पुत्र से भी अधिक मानते थे। उनके सारे क्रिमिनल ट्रायल केस की देख रेख में ही करता था।

उनका कहा लग गया।

सारा भय हवा हुआ।

एक संकल्प खुद ही पैदा हुआ। मुझे उस संकल्प ने धरती से उपर उठा लिया।

मैं बदल चुका था।

 इसी प्रश्न को उलट कर पुछे। देने वाले वहाँ तक क्यों' कैसे जाते है? क्या उन्हे गुस्सा तक नहीं आता? क्या उन्हें सजा का डर नहीं लगता?

मेरे कार्य काल मे मैने एक क्रम मे यह पेशकार ऐंड पर 100% रोकने में सफलता पाई। पेशकारों ने मेरी बात 100% मानी।

दो महिनों मे वकीलों के संगठन ने बहुत परेशान हो जाने की बात की। अधिवक्ता लिपिक ने भी बहुत परेशानी की बात की।

बाद में पता चला की पेशकारों की आड़ में बहुत लोग अपना धन्धा चलाते है।

पेशकारों के 10% से इन बिचौलियों का 200% बिल चलता है'।धन्धा चलता रहता है। कचहरी के इस घालमेल का मेग्निफाईड विज्ञापन ही इस परिसर की भीड़ का रहस्य है। एक का 200 प्रचार करो, सब को बदनाम करो और अपना पेट भरो। बदनामी सारी पेशकार के जिम्मे। बाकी सब तो सेवा शुल्क लेते है। सेवक हैं।

पेशकार को तो पता भी नहीं चलता।

पर पेशकार के बारे मे यही सब फैलाना ही होगा ताकि बाकी 99% का ब्यपार चलता रहे।

देखीये, केश के निपटते ही ये दलाल मुँह लटकाये घूमते रहते है।

इनकी डायरी में कितने कब के निपट गये मुकदमे अब भी चलते रहते है और हर बीस एक दिन बाद एक अण्डा देते रहते है। बस पेशकार का नाम चलता रहे। बहुत से मुव्क्किल दो तीन साल से कचहरी आये नहीं' बस वकील,ताईद पेशकार का खर्च भेज रहें हैं।

 इंदिरा जी के समय विपक्ष में पर्याप्त नैतिक बल था, वे सीधे इंदिरा जी की आंख से आँख मिला कर बात कर पाते थे - संख्या बल के आधार पर नहीं, अपने नैतिक बल के आधार पर। उन्हें शासन पक्ष से कोई फेवर, मुरव्वत की कभी जरूरत नहीं थी।इंदिरा उन्हें राजनैतिक आधार पर ही जेल तक पहुँचा पाई हो। सीधे कोई भ्र्ष्टाचार का आरोप इंदिरा जी अपने विरोधियों पर न लगा पाई , न सम्भव था।

मोदी जी को तो दबा, कुचला, भ्रष्टाचार से ढका, रंगा, कचहरी, कोर्ट, वकील, जेल के अंदर बाहर करता विपक्ष मिला जो मोदी या सरकार तो छोड़िये, न्यायाधीशों, अधिकारियों, पुलिस-इनकमटैक्स वालों के बगल में भी खड़े होने में डरते है, बराबरी का ब्यवहार का मनोबल उनके पास नहीं रहा।यह विपक्ष अपनी पोजिसनिंग के लिये मीडिया की चिरौरी करता दिखता है।

यही है इंदिरा और मोदी की तुलना के पैरामीटर।

और भी हो सकते हैं।

 1982 के आस पास की बात है। मैं वकालत के पेशे में प्रवेश का इच्छुक था। जिला मुख्यालय में कस्बे की कचहरी ही उपलबद्ध विकल्प थी। सीनियर खोज रहा था। एक यदुवंशी ५५ एक साल के पी पी थे। देहाती वेशभूषा। राजनैतिक चरित्र। समाजवादी टाईप। अक्खड़। मुंहफट। पर कचहरी में व्यापक स्वीकार्यता थी। प्रांत के नेता, मंत्री आते रहते थे। डी एम, एस पी भी आते रहते, उनको बुलाते रहते। बार, बेंच में भी दब दबा।

उन्होंने बताया कि सरकारी लोग सक्षम लोगों से अपना काम निकलवाने, समुचित सलाह के लिए आपकी बड़ाई करते है। आपको फुलाते है। फूलना मत।

और सरकारी लोगों के आने जाने की धमक से आम आदमी आपसे दूर हो जाएगा , डर जायेगा, आपको भी हाकिम ही समझने लगेगा, अपनी बात डर के मारे कह ही नहीं सकेगा। उन्होंने बताया कि गांव देहात का आदमी साहबी ठाठ से घबराता है कि साहब है न जाने कौन सी बात का बुरा मान कहां फॅसा दे। बहुत डरता है।

उन्होंने साहबी रंगबाजी से दूर रहने को कहा। आम लोगों से तब भी संवाद करते रहने की सलाह दी जब ऐसा करना सम्भव न हो। उन्होंने संवाद के लिए किसी बिचौलिए को बीच में न लाने की बात समझाई।

 लम्बित मुकदमें लाखों की रोजी रोटी का आधार है। कोई भी मुकदमों के निस्तार होने मे ईमानदारी से रुचि नहीं रखता। यहाँ समय समय पर मुकदमों का प्रमोशन होता है। मुकदमे अमीबा की तरह खुद ही अपने न्युक्लीयस का विखंडन कर नये मुकदमे पैदा करते है। अपील, रिवीजन, रिव्यू, इंटरलोकट्री मैटर ये एक ही मुकदमें के बाल बच्चे होते है और स्वतंत्र मुकदमों की शक्ल अख्तियार कर लेते है।

मुकदमे वकील, मुहर्रिर की दुधारू गाय है। मुकदमेबाज का खेल है। कुछ का प्रिय हथियार है। हारे हूए की झूठी उम्मीद है। सरकार के लिये दायित्व और खिलवाड़ है। मुकदमें रक्त बीज है। मुकदमें एक सन्त्रास है।बड़े धनी लोगों का विलास है।मुकदमे एक भार है, दायित्व है जो पीढियों की यात्रा करता है।

मुकदमे कचहरी की तमाम शक्तियो की रखैल है। ये परस्पर संयोग कर इन्हीं शक्तियों के कमाऊ पूत पैदा करते है।

कोई नहीं चाह्ता इनका निस्तार।

न्यायालय का आधार है। न्यायालय के डेटा है। फाईल है।

 अंग्रेजों के द्वारा खड़ा किया गया कचहरी का ढाँचा नेटिव लोगों के दमन की संस्था थी और इससे जुड़े लोग अंग्रेजों की ब्यवस्था के दलाल ?

Thursday, 5 November 2020

 बीजेपी वाले चीन को बाप नहीं समझते। मक्का मदीना, पकिस्तान की रखैल नहीं है। ये अमेरिका, पकिस्तान ही नहीं मालदीव के भी दोस्त है। बीजेपी वाले पाकिस्तानी एटम बम के विज्ञापन नहीं।बी जे पी वाले क्वात्रोची या एंडरसन भक्त नही माँ भारती के भक्त है। ये खानों और रवीशियों को पद्म दान नहीं देते। ये नेशनल हेराल्ड पचावन हार नहीं है। ये बैकोंक मे नाचे नहीं, न ही 2g, कोयला, कॉमनवेल्थ गटकन हार है। ये सेना को भूखे नंगे, बिना हवाई जहाज के सुलावन हार नही है

ये राम मन्दिर बणावण हार, 370 हटावन हार, अफजल वानी सैफुल्लाह तारण हार है इस लिये इन्हें अन्ध भक्त कहा जाता है। इन्हें गर्व है।

बस इस लिये कमिशन खावन हार इन्हें अन्ध भक्त कहते है।आ

 दोषी लगने, दिखने से लेकर दोषी सिद्ध होने, दोषी प्रमाणित होने तक के बीच की यात्रा के लिये जमानत की ब्यवस्था है। पुलिस दोषी दिखने या लगने तक ही है। दोषी ही है, यही इसी अपराध का विधानत: दोषी है यह न्यायालय का काम है। पुलिस का काम दोषी सिद्ध करना, प्रमाणित करना नहीं है। पुलिस को बन्दूक दी गई है। उसे निर्णय का भी अधिकार दे देंगे क्या?

कोर्ट को निर्णय का ही अधिकार है। बन्दूक कोर्ट के पास नहीं है।

 फिल्मों में इशारों में कही बात को समझते तो हम अपने अनुभव से ही है।

5/10/20 % ही तो दिखाया जाता है, फिल्मों में, बाकी 80/90/95% तो समाज स्वयं कल्पना करता है।

गानों में इशारे ही तो है औऱ समाज पूरा दृश्य देखने लगता है। नाचने लगता है, रोने लगता है, सर्वांग उत्तेजित हो अश्लील हरकतें करता है। 90 % तो फ़िल्म वाले कि यात्रा नहीं रहती।

वह तो एक दिशा में कोई तीर छोड़ता है। संकेत भर करता है। बाकी की तो आपकी अपनी यात्रा है। आपकी संस्कार जनित, नीति जनित, उत्तेजना जनित, आदत से प्रभावित, तर्क से तय की गई, अंदाज तो आपने खुद ही लगाया।

वह तीर किस दिशा में छोड़ा गया इसका अंदाज समाज को ही लगाना है।

अब यदि फ़िल्म वाले ने, गाने वाले ने, डायलॉग लिखने वाले ने, कलाकार ने अपने लिखे, बोले, किये, देह यष्टि से आपको ताड़ लिया या आपने 10% मार्ग दिखाने पर बाकी नब्बे % मार्ग तय कर लिया,अपना रास्ता खोज लिया तो मानना चाहिए कि फ़िल्म वाले ने, लिख कर, बोल कर, देह यष्टि से आपको आपका वास्तविक रूप दिखाया।

तो हुई न फ़िल्म, गीत, डायलॉग आपकी तस्वीर और समाज का आईना।

 क्या जिला न्यायालय में हारा हुआ मुकदमा उच्च न्यायालय में जीता जा सकता है? तब जब साक्ष्यों और गवाहों को जिला न्यायालय ने सिरे से नकार दिया हो।

आपराधिक मामलों में उच्च न्यायालय में निम्न न्यायालय के दोष सिद्धि के 67% कमो बेस मामलों में लाभ मिलता ही है। सिविल मामलों में भी 40 प्रतिशत फर्स्ट अपील में और 20 प्रतिशत सेकंड अपील में राहत मिलती है।

ये प्रतिशत में आंकड़े एक आकलन भर ही है, सत्यापित नहीं है, किसी अध्ययन पर नहीं हैं। अनुभव आधारित ब्यक्तिगत स्वतः स्फूर्त आकलन है, वैज्ञानिक नही, अनुभव आधारित है।

उच्च न्यायालय में अपील अवश्य की जानी चाहिए।

जो जहाँ थक गया वहीं हार गया।

न्यायालयों में निर्णय कुश्ती के खेल की तरह है। दांव पेंच, सामने वाले कि ट्रेनिंग, प्रत्युतपन्नमति, क्रिया-प्रतिक्रिया, क्षमता, सजगता, स्टेमिना, ताकत, निर्णायक तिथि को उपलब्ध साधन, सहयोग, संयोग पर निर्भर करता है।

Wednesday, 7 October 2020

 जी आप उनके प्रिय पात्र थे. वे आपकी बड़ी तारीफ करते थे. एक बार डॉ. बी बी अग्रवाल ने आपकी थोड़ी आलोचना उनके सामने की थी . आप अग्रवाल साहब ए बेटे का मुकदमा लड़ रहे थे जब वो सीमेंट बरामदगी के मामले में जेल गया था. आपकी आलोचना सुनते ही पापा भड़क गए थे और उन्हें फटकार लगाई थी. उन्होंने कहा था कि होगा आपका रिश्तेदार पर मैं  उसे आपसे ज्यादा जनता हूँ.

Saturday, 5 September 2020






 मेरी कानूनी समझ पर धार चढाई राम कृपाल बाबू ने।AIR पढ़ना सिखाया, समझना सिखाया और उसके गूढ़ रहस्य बताये। सिविल की प्लिडींग्स, मैनीपुलेसन की कला सिखाई, वे बड़े बेबाक थे। अपने पुत्रों के भी गुरु थे। पुत्रों को सिखाने का बडा प्रयास करते रहते थे।उनके पुत्र सम्भवत: मेरी उपस्थिति से असहज हो जाते थे। उन्हे जजों के पारस्परिक संबंध के बारे मे, जजों के चरित्र के बारे  मे बहुत ज्ञान था। वे उस समझ का उपयोग आवश्यकतानुसार करते थे।कानून की बहुत महीन दूरदर्शी समझ थी। कानून के औरंगाबाद मे चलते फिरते इण्साईक्लोपिडीया थे। क्रुर मजाक कर लेते थे।वकालत करने के पहले वे कडक जज थे, अनमनीय। वकील हूए तो वकालत के सारे गुणों से पूर्ण। जजों का दोहन करना वे खूब जानते थे। किसी भी निर्णय को देख सुन या किसी भौ कार्यवाही को देख, या किसो भी फाईल को देख वे सटीक   सम्भावित निष्कर्ष तक पहुंच जाते थे।सक्षम जूनियर उनकी कमजोरी थे। आलसी जूनियर पर वे कुढ़्ते थे।भाषा पर , कानून पर , सिविल और लैंड रेवेंयू विषयों पर  अधिकार था। उनकी ड्राफ्टिंग परफ़ेक्ट थी। उनकी बहस कानून से ही होती थी। वे चुटीली बहस करते थे। रंगबाजों से रंगबाजी से, बेशर्मों से बेशर्मी से पेश आते थे। उनका अपना दुर्भाग्य था कि उन्होने औरंगाबाद मे वकालत शुरु करी। यह औरंगाबाद का सौभाग्य था। पर औरंगाबाद में उनकी परम्परा को कोई आगे नहीं बढ़ा पाया। उनके लगातार नियमित सिरिस्ता में सुबह, शाम, छुट्टियों मे भी बैठने, पढ़ने के क्रम को कोई आगे नहीं बढ़ाया।वे कानूनी समझ मे बिहार स्तर के प्रखर विद्वान थे। अपनी सेवा काल में  उनकी प्रतिभा, मेरे ब्यक्तित्व में उनका योगदान, कानून पढ़ाने, सिखाने का उनका उत्साह बहुत याद आया।

 *कोई भी संरचना हो, कितनी भी उन्नत हो, विशाल या विस्मयकारी विलक्षण हो, उसके वर्तमान से विचलित हूए बिना उसको बनाने वाले हाथों, उस रचना के पीछे के विचार, उस रचना के कच्चे माल मे रुचि रखने वाले को प्रणाम।*

मेरे इतिहास में, मेरे गुरूजनों में आपकी रुचि प्रणम्य है।

दुधेश्वर बाबू ने धैर्य- ग्रामीण समझ, राजनैतिक चिन्तन दिया, साहस दिया, कचहरी की शक्तियों से परिचय करवाया, प्रत्यक्ष साथ दिया, अपना नाम दिया, अपनी संगति दी, मुझे ताकत दी, मुझे खड़ा किया।औरंगाबाद ला कालेज में ईन्ट्रोड्युस किया, रेफर किया, अवसर दिया, पहचान दी।बेसिक्ल्ली वे क्रिमिनल केसेस के प्रक्टिकल महीन तथ्य तक पहुंचने के मार्ग के सिद्ध हस्त पथ  प्रदर्शक थे।बड़े कठोर टीचर थे। बहुत कड़े अनुशासन के हिमायती है।छोटी सी गलती भी उन्हें अस्वीकार्य थी। पर  थोड़ा सा भी अच्छा प्रयास किसी का भी हो उसकी वे खुले हृदय से तारीफ वह भी सबके सामने, यहाँ तक की कोर्ट मे जज के सामने भी करते थे। उनका हृदय विशाल था। पर उन्हें सामन्ती प्रवृति से चिढ थी। उन्होंने दृढता से अप्रिय सत्य भी सामने वाले के मुँह पर  कहना सिखाया। वे वकालत के अपने आचरण और समाज-परिवार के अपने आचरण को अलग अलग रखते थे।अपने विरोधियों से , विरुद्ध विचार से, उनके कामों से कभी कोई घृणा नहीं थी, विरोध भर था और वह भी प्रकट विरोध। वकालत के पेशे में उन्हे कोर्ट से सांठगांठ करने का काम जरा भी पसंद नहीं था। इस काम से उन्हें घृणा थी। वे  कचहरी के कामों में शार्ट कट को देख समझ कर भी कभी उस तरफ न आकर्षित हूए न उन्होने कभी ऊन रास्तों की हिमायत की। वे विलक्षण हाजिर जबाब  थे। बड़ी कठोर बात बात करते करते कह जाते थे। उबलते या जमते नहीं ही थे। वकालत के पेशे मे हाथ गन्दा और लंगोट ढीला करने के अवसर बहुत आते है। वकालतखाने में सभी तरह के सद्स्य होते है। उन सब की संगति मे भी साफ सुथरा रह जाना उनकी विशेष कला थी। उन्होंने बताया कि कितना भी चरित्र हीन  लोलुप, क्रुर कोई क्यों न हो, यदि उसे मनसा वाचा कर्मणा देहयष्टि से आमंत्रित नहीं करोगे तो न वह तुमको ट्राई करेगा न अकारण आक्रमण। बिना किसी आधार/कारण कोई प्रस्ताव तक नहीं करेगा।

दुधेश्वर बाबू बेसिकली शालीन, सहनशील थे। बेवजह आक्रमकता उन्हे नहीं  सुहाती थी। बहस हो जिरह हो, समाजिक संबंध हो, राजनीति हो, वे कभी भी गैर आनुपातिक नहीं होते थे। जज साहबान का प्रिय होने का उन्होने कभी प्रयास नहीं किया। उनकी छवि एक निष्पक्ष आदर्श तथ्य परक वकील की थी।

हिन्दी मे अधिक सहज होते थे। अंग्रेजी केवल कचहरी तक सिमित।

मगही ही उन्हें अधिक प्रिय।

आगे चालू रहेगा---->>>>

🙏🙏

Friday, 21 August 2020

 एक अत्यंत प्रेरणादायक प्रसङ्ग। अवश्य पढ़ें।


*विवाह उपरांत जीवन साथी को छोड़ने के लिए 2 शब्दों का प्रयोग किया जाता है* 

*1-Divorce (अंग्रेजी)* 

*2-तलाक (उर्दू)* 

*कृपया हिन्दी का शब्द बताए...??*


कहानी आजतक के Editor संजय सिन्हा की लिखी है 


तब मैं जनसत्ता में नौकरी करता था एक दिन खबर आई कि एक आदमी ने झगड़ा के बाद अपनी पत्नी की हत्या कर दी मैंने खब़र में हेडिंग लगाई कि पति ने अपनी बीवी को मार डाला खबर छप गई किसी को आपत्ति नहीं थी पर शाम को दफ्तर से घर के लिए निकलते हुए प्रधान संपादक प्रभाष जोशी जी सीढ़ी के पास मिल गए मैंने उन्हें नमस्कार किया तो कहने लगे कि संजय जी, पति की बीवी नहीं होती


“पति की बीवी नहीं होती?” मैं चौंका था


“बीवी तो शौहर की होती है, मियां की होती है पति की तो पत्नी होती है


भाषा के मामले में प्रभाष जी के सामने मेरा टिकना मुमकिन नहीं था हालांकि मैं कहना चाह रहा था कि भाव तो साफ है न ? बीवी कहें या पत्नी या फिर वाइफ, सब एक ही तो हैं लेकिन मेरे कहने से पहले ही उन्होंने मुझसे कहा कि भाव अपनी जगह है, शब्द अपनी जगह कुछ शब्द कुछ जगहों के लिए बने ही नहीं होते, ऐसे में शब्दों का घालमेल गड़बड़ी पैदा करता है


प्रभाष जी आमतौर पर उपसंपादकों से लंबी बातें नहीं किया करते थे लेकिन उस दिन उन्होंने मुझे टोका था और तब से मेरे मन में ये बात बैठ गई थी कि शब्द बहुत सोच समझ कर गढ़े गए होते हैं


खैर, आज मैं भाषा की कक्षा लगाने नहीं आया आज मैं रिश्तों के एक अलग अध्याय को जीने के लिए आपके पास आया हूं लेकिन इसके लिए आपको मेरे साथ निधि के पास चलना होगा


निधि मेरी दोस्त है कल उसने मुझे फोन करके अपने घर बुलाया था फोन पर उसकी आवाज़ से मेरे मन में खटका हो चुका था कि कुछ न कुछ गड़बड़ है मैं शाम को उसके घर पहुंचा उसने चाय बनाई और मुझसे बात करने लगी पहले तो इधर-उधर की बातें हुईं, फिर उसने कहना शुरू कर दिया कि नितिन से उसकी नहीं बन रही और उसने उसे तलाक देने का फैसला कर लिया है


मैंने पूछा कि नितिन कहां है, तो उसने कहा कि अभी कहीं गए हैं बता कर नहीं गए उसने कहा कि बात-बात पर झगड़ा होता है और अब ये झगड़ा बहुत बढ़ गया है ऐसे में अब एक ही रास्ता बचा है कि अलग हो जाएं, तलाक ले लें


निधि जब काफी देर बोल चुकी तो मैंने उससे कहा कि तुम नितिन को फोन करो और घर बुलाओ, कहो कि संजय सिन्हा आए हैं


निधि ने कहा कि उनकी तो बातचीत नहीं होती, फिर वो फोन कैसे करे?


अज़ीब संकट था निधि को मैं बहुत पहले से जानता हूं मैं जानता हूं कि नितिन से शादी करने के लिए उसने घर में कितना संघर्ष किया था बहुत मुश्किल से दोनों के घर वाले राज़ी हुए थे, फिर धूमधाम से शादी हुई थी ढेर सारी रस्म पूरी की गईं थीं ऐसा लगता था कि ये जोड़ी ऊपर से बन कर आई है पर शादी के कुछ ही साल बाद दोनों के बीच झगड़े होने लगे दोनों एक-दूसरे को खरी-खोटी सुनाने लगे और आज उसी का नतीज़ा था कि संजय सिन्हा निधि के सामने बैठे थे उनके बीच के टूटते रिश्तों को बचाने के लिए


खैर, निधि ने फोन नहीं किया मैंने ही फोन किया और पूछा कि तुम कहां हो  मैं तुम्हारे घर पर हूं आ जाओ नितिन पहले तो आनाकानी करता रहा, पर वो जल्दी ही मान गया और घर चला आया


अब दोनों के चेहरों पर तनातनी साफ नज़र आ रही थी ऐसा लग रहा था कि कभी दो जिस्म-एक जान कहे जाने वाले ये पति-पत्नी आंखों ही आंखों में एक दूसरे की जान ले लेंगे दोनों के बीच कई दिनों से बातचीत नहीं हुई थी


नितिन मेरे सामने बैठा था मैंने उससे कहा कि सुना है कि तुम निधि से तलाक लेना चाहते हो


उसने कहा, “हां, बिल्कुल सही सुना है अब हम साथ नहीं रह सकते


मैंने कहा कि तुम चाहो तो अलग रह सकते हो पर तलाक नहीं ले सकते


“क्यों


“क्योंकि तुमने निकाह तो किया ही नहीं है”


अरे यार, हमने शादी तो की है


“हां, शादी की है शादी में पति-पत्नी के बीच इस तरह अलग होने का कोई प्रावधान नहीं है अगर तुमने मैरिज़ की होती तो तुम डाइवोर्स ले सकते थे अगर तुमने निकाह किया होता तो तुम तलाक ले सकते थे लेकिन क्योंकि तुमने शादी की है, इसका मतलब ये हुआ कि हिंदू धर्म और हिंदी में कहीं भी पति-पत्नी के एक हो जाने के बाद अलग होने का कोई प्रावधान है ही नहीं


मैंने इतनी-सी बात पूरी गंभीरता से कही थी, पर दोनों हंस पड़े थे दोनों को साथ-साथ हंसते देख कर मुझे बहुत खुशी हुई थी मैंने समझ लिया था कि रिश्तों पर पड़ी बर्फ अब पिघलने लगी है वो हंसे, लेकिन मैं गंभीर बना रहा


मैंने फिर निधि से पूछा कि ये तुम्हारे कौन हैं?


निधि ने नज़रे झुका कर कहा कि पति हैं मैंने यही सवाल नितिन से किया कि ये तुम्हारी कौन हैं? उसने भी नज़रें इधर-उधर घुमाते हुए कहा कि बीवी हैं


मैंने तुरंत टोका ये तुम्हारी बीवी नहीं हैं ये तुम्हारी बीवी इसलिए नहीं हैं क्योंकि तुम इनके शौहर नहीं तुम इनके शौहर नहीं, क्योंकि तुमने इनसे साथ निकाह नहीं किया तुमने शादी की है शादी के बाद ये तुम्हारी पत्नी हुईं हमारे यहां जोड़ी ऊपर से बन कर आती है तुम भले सोचो कि शादी तुमने की है, पर ये सत्य नहीं है तुम शादी का एलबम निकाल कर लाओ, मैं सबकुछ अभी इसी वक्त साबित कर दूंगा


बात अलग दिशा में चल पड़ी थी मेरे एक-दो बार कहने के बाद निधि शादी का एलबम निकाल लाई अब तक माहौल थोड़ा ठंडा हो चुका था, एलबम लाते हुए उसने कहा कि कॉफी बना कर लाती हूं


मैंने कहा कि अभी बैठो, इन तस्वीरों को देखो कई तस्वीरों को देखते हुए मेरी निगाह एक तस्वीर पर गई जहां निधि और नितिन शादी के जोड़े में बैठे थे और पांव पूजन की रस्म चल रही थी मैंने वो तस्वीर एलबम से निकाली और उनसे कहा कि इस तस्वीर को गौर से देखो


उन्होंने तस्वीर देखी और साथ-साथ पूछ बैठे कि इसमें खास क्या है?


मैंने कहा कि ये पैर पूजन का रस्म है तुम दोनों इन सभी लोगों से छोटे हो, जो तुम्हारे पांव छू रहे हैं


“हां तो


“ये एक रस्म है ऐसी रस्म संसार के किसी धर्म में नहीं होती जहां छोटों के पांव बड़े छूते हों लेकिन हमारे यहां शादी को ईश्वरीय विधान माना गया है, इसलिए ऐसा माना जाता है कि शादी के दिन पति-पत्नी दोनों विष्णु और लक्ष्मी के रूप हो जाते हैं दोनों के भीतर ईश्वर का निवास हो जाता है अब तुम दोनों खुद सोचो कि क्या हज़ारों-लाखों साल से विष्णु और लक्ष्मी कभी अलग हुए हैं दोनों के बीच कभी झिकझिक हुई भी हो तो क्या कभी तुम सोच सकते हो कि दोनों अलग हो जाएंगे? नहीं होंगे हमारे यहां इस रिश्ते में ये प्रावधान है ही नहीं तलाक शब्द हमारा नहीं है डाइवोर्स शब्द भी हमारा नहीं है


यहीं दोनों से मैंने ये भी पूछा कि बताओ कि हिंदी में तलाक को क्या कहते हैं?


दोनों मेरी ओर देखने लगे उनके पास कोई जवाब था ही नहीं फिर मैंने ही कहा कि दरअसल हिंदी में तलाक का कोई विकल्प नहीं हमारे यहां तो ऐसा माना जाता है कि एक बार एक हो गए तो कई जन्मों के लिए एक हो गए तो प्लीज़ जो हो ही नहीं सकता, उसे करने की कोशिश भी मत करो या फिर पहले एक दूसरे से निकाह कर लो, फिर तलाक ले लेना


अब तक रिश्तों पर जमी बर्फ काफी पिघल चुकी थी


निधि चुपचाप मेरी बातें सुन रही थी फिर उसने कहा कि


भैया, मैं कॉफी लेकर आती हूं


वो कॉफी लाने गई, मैंने नितिन से बातें शुरू कर दीं बहुत जल्दी पता चल गया कि बहुत ही छोटी-छोटी बातें हैं, बहुत ही छोटी-छोटी इच्छाएं हैं, जिनकी वज़ह से झगड़े हो रहे हैं


खैर, कॉफी आई मैंने एक चम्मच चीनी अपने कप में डाली नितिन के कप में चीनी डाल ही रहा था कि निधि ने रोक लिया, “भैया इन्हें शुगर है चीनी नहीं लेंगे


लो जी, घंटा भर पहले ये इनसे अलग होने की सोच रही थीं और अब इनके स्वास्थ्य की सोच रही हैं


मैं हंस पड़ा मुझे हंसते देख निधि थोड़ा झेंपी कॉफी पी कर मैंने कहा कि अब तुम लोग अगले हफ़्ते निकाह कर लो, फिर तलाक में मैं तुम दोनों की मदद करूंगा


शायद अब दोनों समझ चुके थे


*हिन्दी एक भाषा ही नहीं - संस्कृति है*


*इसी तरह हिन्दू भी धर्म नही - सभ्यता है*

👆उपरोक्त लेख मुझे बहुत ही अच्छा लगा, जो सनातन धर्म और संस्कृति से जुड़ा है।आप सभी से निवेदन है कि समय निकाल कर इसे पढ़े घोर करे, अच्छा लगे तो आप अपने मित्रों के पास प्रेषित करे👏👏

🌺 सनातन धर्म की जय🌺

अग्रेषित सन्देश

Thursday, 13 August 2020

 एक्सेंट , उच्चारण या लहजा , चाहे देसी का हो या विदेशी का अक्सर अजीबोगरीब घटनाओं का कारण बनता है…

सन 1990

सूरत में एक पाँच मंजिला अपार्टमेंट में हम नए-नए शिफ्ट हुए थे.

उस इमारत में कुल बीस फ्लैट थे, उसमें सिर्फ पाँच छः फ्लैट में लोग रहते थे, बाकी फ्लैट अभी खाली थे

ग्राउंड फ्लोर पर कार पार्किंग के कोने में बने कमरे में एक मात्र एक नेपाली कर्मचारी अपनी पत्नी के साथ रहता था

नैन सिंह…

करीब चालीस वर्ष की उम्र , छोटा क़द, दूर से गोल मटोल सा दिखने वाला नैनसिंह नेपाल के पहाड़ी इलाके से था .

गोल मटोल चेहरे पर नन्हीं उनींदी आँखें…

हमेशा खाकी कपड़े पहने और नेपाल की पहचान पीतल की नन्हीं सी "दो कटार वाली एम्बलम" की टोपी हमेशा उसके सर पर रहती थी.

लिफ्ट मैन की ड्यूटी के साथ-साथ रात की पहरेदारी और हमारे छोटे-मोटे काम भी वह कर दिया करता था जैसे पास की दुकान से ब्रेड बटर या घर के छोटे-मोटे सामान वगैरह ले आना…

नमश्ते शाब जी … हरदम मुस्कुराता चेहरा और मीठे नेपाली उच्चारण वह सोसायटी में लोकप्रिय था…

वह जब किसी काम से जाता या आराम कर रहा होता था तो उसकी सीधी सादी पत्नी लिफ्ट को गर्व से यूँ ऑपरेट करती थी मानो चंद्रयान को आकाश में ले जा रही हो.

कभी कोई सामान लाने पर बाकी बचे हुए दो तीन रुपए उसको टिप या बख्शीश के तौर पर दे दिये जाते थे तो उसकी आदत के अनुसार उन रुपयों को स्वतः ही अपने माथे से छूकर धन्यवाद प्रकट करता था.

एक दिन मैं और मेरा कजिन बिल्डिंग के ग्राउंड फ्लोर पर पार्किंग में खड़े एक स्कूटर पर बैठे गप शप कर रहे थे…

ए नैन सिंह… इधर आ…मैंने उसको इशारे से अपने पास बुलाया…

मैंने अपनी जेब से दस का नोट निकाला और उसके हाथ में थमाया …

उसने अपनी आदत के अनुसार उसको नोट को सीधा अपने माथे से लगाया…

अबे यह बक्शीश नहीं है …जा एक ब्रेड लेकर आ…

नैन सिंह के चेहरे पर एक शर्मिंदगी भरी हँसी आ गई…

काफी देर हो गई इंतजार करते हुए लेकिन नैन सिंह नहीं आया

कुछ देर बाद देखा तो नैन सिंह दूर से अपनी "पेटेंट चाल" से चल कर आता हुआ दिखाई दिया…

हर कदम पर उसके कंधे आगे की तरफ झुक जाते और दोनों घुटने यूं मुड़ जाते थे मानों कंधों पर भारी वजन उठाए हुए चल रहा हो..

उसे दूर से आते देख मेरे भाई ने मुस्कराते हुए कहा …

यह भगवान भी इंसान के जीन्स में क्या क्या फिट कर देता है…

ऐसा क्या हुआ ??? मैंने भाई से उत्सुकता से पूछा

देखो तो सपाट जमीन पर भी ऐसे चल रहा है कि जैसे हिमालय पहाड़ पर चढ़ रहा हो …

लेकिन इसके हाथ में ब्रेड तो नहीं है, लगता है बेवकूफ आदमी कुछ और ही ले आया है…मैंने शक जताया

नैन सिंहअपने दोनों हाथों से डब्बीनुमा आकार बनाकर उसमें छुपाकर रहस्यमय तरीके कुछ ला रहा था , मानों रास्ते में उसे सोने का बिस्किट मिल गया हो…

तेरे हाथों में क्या है??? मैंने उत्सुकता से पूछा

जैसे ही उसने अपने हाथों को खोला तो उसमें से नन्हा सा चिड़िया का बच्चा निकला आया…

वो मासूम सा चिड़िया का बच्चा डर के मारे काँप रहा था…उसके पंख घायल थे और जगह-जगह से खून निकल रहा था…

अरे !!! ये तो बुरी तरह घायल है… मैंने आश्चर्य के साथ कहा

शाब… राश्ते में बौत शारा कौआ इशको चोंच मार कर घायल कर दिया शाब… इशीलए मैं इशको बचाके लाया… नैन सिंह ने सफाई दी…

कौओं का झुंड अभी भी उस नन्हें पंछी की ताक में था और काँव काँव करते हुए मंडरा रहा था…

मैंने ज्यादा वक्त गँवाये बिना घर से एंटीबायोटिक क्रीम मंगाई और उसकी मासूम पंछी की मरहम पट्टी की…

उसे पानी पिलाया और नैन सिंह उसे खिलाने के लिए अपनी खोली से थोड़े से उबले हुए चावल ले आया…

उस नन्हें पंछी के लिए के हमने पुठे के एक कार्टन में नरम कपड़ा और घास बिछा कर उसके लिए सुरक्षित सा घर बनाया…

सिर्फ तीन दिन में ही वह नन्हा पंछी फुदकने लगा… ऐसा लगा के चार-पांच दिन में फिर से उड़ने लगेगा…

अचानक वो नन्हा पंछी बिल्डिंग में रहने वाले बच्चों के लिए आकर्षण का केंद्र बन गया…

एक दिन सुबह सुबह मैं अपने ड्राइंग रूम में बैठकर टीवी देख रहा था

कि इतने में में नैन सिंह दरवाजे पर हाजिर हुआ…

बोलो नैन सिंह …

शाब …"सीरिया का बादशाह मर गया" …इतना कहते हुए नैन सिंह के चेहरे पर भारी उदासी थी

मैंने तुरंत टीवी पर न्यूज़ चैनल लगायाऔर हैडलाइन देखने लगा…

तुम्हारा सगे वाला था क्या ??? मैंने पूछा

उसने निराशा में सर झुकाए हुए अपना दायाँ हाथ डमरु बजाने की अदा में यूँ हिलाया लाया कि जैसे कह रहा हो… क्या पता ???

अचानक मेरे जहन में आया कि नेपाल का और सीरिया का क्या संबंध हो सकता है…

इतने में पीछे से मेरी पत्नी चाय का कप लेकर हाज़िर हुई…और बोली…

तुम भी ना लगता है कानों में रुई डाल कर बैठते हो…

अरे भई ये कह रहा है कि "चिड़िया का बच्चा मर गया"…मुझे सुनकर बहुत दु:ख हुआ और साथ में अपनी बेवकूफी पर हँसी भी आने लगी…

मैंने शर्मिंदगी से बचने के लिए अपना सर झुकाया, होंठ भींच कर अपनी हँसी को रोका और साथ-साथ निराशा में सिर हिलाया…

अब तुम्हें क्या हुआ है ??? इस बेचारे ने तो बहुत कोशिश की उसे बचाने की… अब हमने जानबूझकर थोड़ी मारा उसे….मेरी पत्नी ने मुझे डांटते हुए कहा

चलो अब चाय पियो…ज्यादा दुखी मत होओ…मेरी पत्नी ने किसी बच्चे को सांत्वना देने की अदा में कहा…

मैंने बनावटी चेहरा बनाकर दुखी मन से जवाब दिया…

उफ्फ… मेरा सीरिया का बादशाह मर गया …

★ ★ ★ ★ ★ ★ ★

Friday, 31 July 2020

ऐसा नहीं है कि  मैं पर्फेक्ट रहा हुँ
गिरा हूँ, फिसला हूँ, गलत भी हुआ
हर बार एक सबक सीख खड़ा हुआ
अपना सीखा सिखा रहा, पढ़ा रहा
बस मैं खुद से, तुमसे, शर्मिंदा न हुआ।
तुम्हें कुछ गलत न सीखा-पढ़ा जाउँ
इतना सा जतन जीवन-भर करता  रहा।
एक पहचान तुम सबको मिले
तुम सबका सर न कभी भी झुके
न सही पोख्ता, नाम की ही सही
एक नीँव-नाम तो तुम सब के लिये
हो सका तो छोड़ ही जाऊँगा
मेरी याद जब भी तुम्हे आयेगी
उम्मीद है, जीभ का स्वाद तीता नहीं होगा।

Monday, 20 July 2020

अत्यंत दुखी एवं भावविगलित मन से सूचित करते हैं कि हमारे पूज्य पिताजी श्रद्धेय श्री लाल जी टंडन जी महामहिम राज्यपाल, मध्यप्रदेश  का देहावसान आज दिनांक २१.०७.२०२० दिन मंगलवार को प्रात: 5:35 पर हो गया है।
उनके अंतिम दर्शन प्रात: १०.०० बजे से १२.०० बजे तक कोठी नं ९, त्रिलोकनाथ रोड, हजरतगंज पर
अपराह्न १२.०० बजे से अपने निवास ६४, सोंधी टोला, चौक, लखनऊ पर होंगे ।
अंतिम यात्रा ४.०० बजे गुलाला घाट,चौक, के लिए प्रस्थान करेगी।
अंतिम संस्कार गुलाला घाट, चौक, लखनऊ पर ४.३० बजे संपन्न होगा।
करोना आपदा के कारण आप सब से करबद्ध प्रार्थना है की शासन द्वारा निर्धारित दिशा-निर्देशों का पालन करते हुए अपने-अपने घरों से ही पूज्य बाबूजी को श्रद्धा-सुमन अर्पित करें, जिससे कि सोशल डिसटेंसिंग का पालन हो सके।
             
              निवेदक
आशुतोष टंडन ‘गोपाल जी’ (पुत्र)
सुबोध टंडन, अमित टंडन
कुंवर जी टंडन, (भतीजा)
आयुष, वंश (पौत्र)

Monday, 13 July 2020

जी बिल्कुल, दरअसल ये घटना एक पिता और पुत्र की है। पिता जो कि कुछ पुराने ख्यालों का है, और उसका बेटा नए ख्यालों से प्रेरित है। तो ऐसी ही एक सच्ची घटना बताता हूँ।
दरअसल ये बात कुछ साल पहले की है, एक बार पिता और पुत्र साथ-साथ टहलने निकले, वे दूर खेतों की तरफ निकल आये, तभी पुत्र ने देखा कि रास्ते में, पुराने हो चुके एक जोड़ी जूते उतरे पड़े हैं, जो संभवतः पास के खेत में काम कर रहे गरीब मजदूर के थे।

छायाचित्र सोर्स :- ThePrint Hindi
पुत्र को मजाक सूझा। उसने पिता से कहा - क्यों न आज की शाम को थोड़ी शरारत से यादगार बनायें, आखिर मस्ती ही तो आनन्द का सही स्रोत है पिता ने असमंजस से बेटे की ओर देखा।
पुत्र बोला - हम ये जूते कहीं छुपा कर झाड़ियों के पीछे छुप जाएं।जब वो मजदूर इन्हें यहाँ नहीं पाकर घबराएगा तो बड़ा मजा आएगा। उसकी तलब देखने लायक होगी, और इसका आनन्द मैं जीवन भर याद रखूंगा।
पिता, पुत्र की बात को सुन गम्भीर हुये और बोले बेटा ! किसी गरीब और कमजोर के साथ उसकी जरूरत की वस्तु के साथ इस तरह का भद्दा मजाक कभी न करना। जिन चीजों की तुम्हारी नजरों में कोई कीमत नहीं।
वो उस गरीब के लिये बेशकीमती हैं। तुम्हें ये शाम यादगार ही बनानी है, तो आओ। आज हम इन जूतों में कुछ सिक्के डाल दें और छुप कर देखें कि, इसका मजदूर पर क्या प्रभाव पड़ता है।पिता ने ऐसा ही किया और दोनों, पास की ऊँची झाड़ियों में छुप गए।
मजदूर जल्द ही अपना काम ख़त्म कर जूतों की जगह पर आ गया। उसने जैसे ही एक पैर जूते में डाले उसे किसी कठोर चीज का आभास हुआ, उसने जल्दी से, जूते हाथ में लिए और देखा कि अन्दर कुछ सिक्के पड़े थे।
उसे बड़ा आश्चर्य हुआ और वो सिक्के हाथ में लेकर बड़े गौर से उन्हें देखने लगा.फिर वह इधर-उधर देखने लगा कि उसका मददगार शख्स कौन है ? दूर-दूर तक कोई नज़र नहीं आया, तो उसने सिक्के अपनी जेब में डाल लिए, अब उसने दूसरा जूता उठाया, उसमें भी सिक्के पड़े थे।
मजदूर भाव विभोर हो गया।
वो घुटनो के बल जमीन पर बैठ, आसमान की तरफ देख फूट-फूट कर रोने लगा। वह हाथ जोड़ बोला,
हे भगवान् ! आज आप ही किसी रूप में यहाँ आये थे, समय पर प्राप्त इस सहायता के लिए आपका और आपके माध्यम से जिसने भी ये मदद दी, उसका लाख-लाख धन्यवाद।
आपकी सहायता और दयालुता के कारण आज मेरी बीमार पत्नी को दवा और भूखे बच्चों को रोटी मिल सकेगी। तुम बहुत दयालु हो प्रभु ! आपका कोटि-कोटि धन्यवाद।🙏🙏
मजदूर की बातें सुन, बेटे की आँखें भर आयीं।
पिता ने पुत्र को सीने से लगाते हुयेे कहा
क्या तुम्हारी मजाक मजे वाली बात से जो आनन्द तुम्हें जीवन भर याद रहता, उसकी तुलना में इस गरीब के आँसू और दिए हुये आशीर्वाद तुम्हें जीवन पर्यंत जो आनन्द देंगे वो उससे कम है, क्या?
पिताजी, आज आपसे मुझे जो सीखने को मिला है, उसके आनंद को मैं अपने अंदर तक अनुभव कर रहा हूँ।
अंदर में एक अजीब सा सुकून है।
आज के प्राप्त सुख और आनन्द को मैं जीवन भर नहीं भूलूँगा आज मैं उन शब्दों का मतलब समझ गया, जिन्हें मैं पहले कभी नहीं समझ पाया था। आज तक मैं मजा और मस्ती-मजाक को ही वास्तविक आनन्द समझता था, पर आज मैं समझ गया हूँ की लेने की अपेक्षा देना कहीं अधिक आनंददायी है।
लेखक

Wednesday, 8 July 2020

[08/07, 9:27 pm] Ramesh Rateria DJ (Retd): यदि कोई या आपका कोई प्रियजन कोरोनोवायरस संक्रमण से बीमार हैं और अस्पताल में भर्ती होने जा रहा हैं, तो आपको उनके प्रवास की अवधि के लिए हर संभव सामान पैक करना होगा। साथ ले जाने के लिए एकअत्यावश्यक सूची और एक सामान्य सूची दी जा रही है. इसे दो भागों में बांटा गया है, संक्रमण के पहले और संक्रमण के बाद .

१. इससे पहले कि किसी को कोरोना संक्रमण हो उसे क्या सुनिश्चित करने की जरूरत है ?

कृपया ध्यान दें — यह स्वस्थ व्यक्तियों के लिए भी बहुत जरूरी है

( कल्पना करिए कि अगर आप इस दुनिया से विदा ले लेते हैं ( मेरी कामना है कि आप चिरायु हों ) तो आपकी अनुपस्थिति में , आपको अपने जीवनसाथी, परिवार और प्रियजन को क्या बताने की आवश्यकता है ? )

अपने जीवनसाथी / प्रियजनों की सुविधा के लिए विस्तृत रिकॉर्ड की एक सूची तैयार करें .

1. बैंक खातों का विवरण
जमा खाते
ऋण खाते यदि कोई हो
2. फिक्स डिपॉजिट का विवरण
3. लॉकर / सुरक्षित जमा लेख का विवरण
4. डी-मैट खातों का विवरण
शेयरों और प्रतिभूतियों का विवरण
5. बीमा पालिसी का विवरण
6. संपत्तियों का विवरण
7. व्यक्तिगत लिए / दिए गए उधार का विवरण
8. जिन खातों में नामांकन किया जा सकता है नामांकन का प्रयास करें
9. ऑनलाइन वालेट का विवरण
10. घर पर रखी नकदी और कीमती सामान का विवरण
११.विल अगर आपने कोइ की है, का विवरण
२. अगर कोरोना संक्रमण हो जाता है तो क्या करें ?

(अ) अत्यावश्यक सूची

i. दवाओं की पर्याप्त मात्रा जो आप दिनचर्या में उपयोग करते हैं।

ii. चिकित्सा इतिहास (यदि आप नवीनतम नुस्खे और रिपोर्ट की प्रतिलिपि ले जा सकते हैं तो बहुत अच्छा रहेगा)

iii. चार्जर के साथ फोन

iv. फोन का ईयर फोन

v. यदि आप उपयोग करते हैं तो चार्जर के साथ लैपटॉप, आईपैड या टैबलेट

vi. कंघी

vii. टूथब्रश और टूथपेस्ट

viii. टॉयलेट बैग जिसमें साबुन, हेयर ऑयल, फेस क्रीम आदि हों।

ix. यदि आपके पास अतिरिक्त चश्मा हो

x. डेबिट / क्रेडिट कार्ड ( ये व्यतिगत आधार पर निर्णय करें. ये बहुत जोखिम भरा है क्योंकि आपके पास मोबाइल फोन भी होगा जिस पर इसका ओ टी पी आयेगा. और तवियत ज्यादा ख़राब होने पर कोई इसका दुरूपयोग कर सकता है. इसलिए सीमित बैलेंस वाला डेबिट कार्ड ज्यादा उचित होगा)

xi. पहचान पत्र- (स्वास्थ्य बीमा, पेंशनर या कार्यालय का)

xii. यदि आपके पास स्वास्थ्य बीमा पॉलिसी है तो कैशलेस उपचार के लिए पॉलिसी कार्ड

xiii. कुछ नकद

xiv. अतरिक्त मास्क

xv. सैनिटाइजर

xvi. पेन /बॉल पॉइंट पेन / पेंसिल

xvii. नोटबुक / पेपर पैड

xviii. यदि पति / पत्नी संयुक्त खाताधारक नहीं है, तो अपने पति / पत्नी के साथ एक हस्ताक्षरित खाली बैंक चेक छोड़ें, अन्यथा केवल चेक बुक उसे सौंप दें.

(ब) सामान्य वस्तुएँ

i. बैग

ii. आरामदायक कपड़े जिन्हें आप अस्पताल में पहन सकते हैं

iii. पजामा/ लोअर इत्यादि

iv. 2-3 तौलिए

v. चप्पलें

vi. मोज़े २-३ जोड़ी

vii. अंडरवीयर / अंडर गारमेंट्स

viii. एक गर्म कपड़ा

ix. आपकी रुचि की पुस्तकें / पत्रिकाएँ

x. धार्मिक पुस्तक (रामायण, गीता आदि) या अन्य धार्मिक ग्रंथ

xi. फोन और इलेक्ट्रॉनिक्स के लिए चार्जर्स

xii. लैपटॉप, आईपैड या टैबलेट


*हम सभी आपके सदैव स्वस्थ बने रहने की कामना करते हैं*
[08/07, 9:27 pm] Ramesh Rateria DJ (Retd): और अब बात करते हैं सरकारी हॉस्पिटल की, जहां निम्न चीजें ले जाना आपके लिए सुविधाजनक रहेगा-

1-तीन चार जोड़ी आरामदायक कपड़े जिन्हें आप घर पर पहनते हैं, या सोते समय पहनते हैं।

2-एक तकिया , आपकी किस्मत ठीक हुई तो हॉस्पिटल में भी इसकी व्यवस्था हो सकती है, लेकिन एहतियात के तौर पर ले जाएं।

3- दो साफ तौलिये।

4-टूथपेस्ट एंड टूथब्रश।

5-पानी गर्म करने के लिए एक कैटल।

6-लौंग, दालचीनी, सौंफ,आदि काढ़े के लिए

7-डॉयफ्रूइट्स।

8-कुछ फल जो ज्यादादिनों तक खराब ना हों।
[08/07, 9:29 pm] Ramesh Rateria DJ (Retd): परंतु अगर हॉस्पिटल जाने से पहले किसी भी मरीज को कुछ तैयारियां अवश्य कर लेनी चाहिए ताकि वहां जाने पर कोई दिक्कत ना आए-

हॉस्पिटल जाने से पहले अपने सभी जरूरी सामान साथ लेकर जाएं

अपने दो तीन जोड़ी कपड़े भी साथ में अपने बैग में रख ले।

थोड़ा बहुत खाने का सामान भी बैग में साथ लेकर जाएं।

अपना मोबाइल चार्जर भी साथ लेकर जाएं।

हो सके तो एक थरमस बोतल भी साथ लेकर जाएं ताकि उसमें आप गर्म पानी रख सके।

अपना ब्रश ,कंघी, तेल इत्यादि जरूरी सामान साथ अवश्य लेकर जाएं ।

चेक करने के लिए थर्मामीटर भी हो सके तो साथ लेकर जाएं।

अपने साथ अपना आधार कार्ड व जरूरी दस्तावेज साथ लेकर जाएं।

अगर आपको पहले कोई और बीमारी है तो उसकी रिपोर्ट वगैरह भी साथ ले जाना ना भूलें।
एकांगी समाज पूरा समाज नहीं होता . पूर्ण समाज को बहुमुखी होना ही होगा . बहु मुखी नहीं ,सर्व मुखी .समाज में सफाई कर्मचारी से लेकर राजा, मंत्री वैद्य सभी चाहिए.सक्षम मूल जमीनी स्तर पर काम न हो तो समाज पैदा ही नहीं होता . केवल नक्शे से ताजमहल नहीं बना करता .केवल सोने चांदी से चूल्हे न तो जलाये जा सकते हैं ,न रोटियां बनाई जा सकती है . केवल गॉड ,ईश्वर , अल्लाह  , हरी नाम ,काव्य- कविता ,नमाज-बन्दगी -अरदास -पूजा ,से व्यक्ति चल सकता है , सुडौल सुदृढ़ समाज नहीं .
मारवाड़ी परिवार अभी भी फ़ौज के किसी भी पद के लिये उत्साहित नजर नहीं आते .अब ग्रामीण इलाके के मारवाड़ी परिवार में  डाक्टर ,इंजीनियर बन रहे हैं .ये लोग क्रमशःबड़े शहरों में पहुंच कर आश्चर्यजनक सफलता अर्जित कर रहे हैं ,सेवा के क्षेत्र में ,अनुसन्धान के क्षेत्र में नयी तकनीक के उपयोग के क्षेत्र में .पर अस्पतालों में आपको या तो मारवाड़ी डाक्टर मिलेंगे या  अकाउंटेंट ,कैशियर  और मेनेजर मिल जायेंगे पर पारा मेडिकल स्टाफ नहीं , नर्सिंग स्टाफ नहीं , सिक्युरिटी स्टाफ नहीं . उसी प्रकार उच्च तकनीक संस्थाओं में बड़े पदों पर या बड़े पदों की शुरुआती पायदान पर आपको तीक्ष्ण बुद्धि प्रवीण अध्येता तकनीक ज्ञान से भरेपूरे ,बड़े उत्साही बड़ी बड़ी डीग्री धरी मारवाड़ी नौजवान मिल जायेंगे पर असिस्टेंट ग्रेड पर नहीं मिलते .
मारवाड़ी नौजवान यदि अपनी  बौद्धिक क्षमता सामान्य पाता है तो वह करियर के रूपमे ट्रेड ,इंडस्ट्री ,कामर्स को ही तरजीह देता है .
साहित्य ,खेल ,कला , सामाजिक कार्य का पूर्णकालिक करियर मारवाड़ी परिवारों को आज भी स्वीकार नहीं 
आध्यात्मिक वे हो सकते है पर उसे भी वे करियर के रूप में स्वीकार नहीं करते.
हिंसक प्रतिरक्षा,शारीरिक या अपने सम्मान -गरिमा की रक्षा के लिये आत्मरक्षा  तक के लिये मारवाड़ी को संघर्ष करते नहीं देखिएगा . हाँ भाड़े पर वे सारी सुरक्षा खोजते हैं ,पर अपने हाथों से , अपने भुज बल से , ना बाबा ना . यह तो गुंडा मवाली का काम है ! ऐसा क्यों. समझ में मुझे तो आज तक नहीं आया
एकांगी समाज पूरा समाज नहीं होता .

Sunday, 5 July 2020

Hopefully one will not get slapped with a charge of sedition if it were to be disclosed that Narendra Modi’s most cherished – and the most secret – desire is to match Jawaharlal Nehru’s record of three consecutive Lok Sabha mandates. 
For now, he looks all set to achieve this perfectly legitimate dream, primarily because he seems to have acquired the unsolicited services of the great man’s great-grand-children, Rahul Gandhi and Priyanka Gandhi Vadra.  Between  them, the brother and sister are determined to make Modi look like a sober and responsible leader.
Till the Congress’s ruling family bows out of the picture, the fight against creeping authoritarianism will just not take off.
मानवीय सम्बन्ध भावों में मेरी समझ में सर्वश्रेष्ठ भाव है शिक्षक भाव।
शिक्षक भाव गुरु भाव नहीं है।
गुरु और शिष्य के बीच एक दासता का सम्बन्ध होता है। यह अधीनता द्योतक संबंध उत्पन्न करता है। गुरु और शिष्य के संबंध में या तो शिष्य पर गुरु की छाप पड़ जाती है, या गुरु शिष्य को अपने समान कर लेता है। गुरु शिष्य सम्बन्ध में शिष्य गुरु के अतिरिक्त अन्य कोई जिज्ञासा नहीं रख पाता।
शिक्षक अपने विद्यार्थी को किसी अधीनस्थ भाव में नहीं रखता। शिक्षक शिक्षा देता है ,ज्ञान का दान नहीं।
दान ,दया ,करुणा ,क्षमा -इन सभी भावों में कहीं न कहीं दाता का अहंकार छिपा होता है। श्रेष्ठता का अहंकार।
शिक्षक के पास यह अहंकार नहीं होता। और इसी कारण शिक्षक विद्यार्थी से स्थायी गुरु शिष्य सम्बन्ध नहीं बनाता।
शिक्षक विद्यार्थी को सीमा में बांधता नहीं है।
गुरु हो सकता है , शिष्य को अपने समान बना ले , कर ले आप समान।
पर शिक्षक विद्यार्थ को अपने से श्रेष्ठ बनने के लिए ललकारता है, अपने भर शिक्षा दे कर मुक्त कर देता है।
शिक्षक नहीं चाहता की उसका विद्यार्थी जीवन भर उसकी स्टाम्प लेकर दास्य भाव से घूमता रहे।
शिक्षक विद्यार्थी के स्वतंत्र व्यक्तित्व का अभ्यर्थी होता है।
शिक्षक अप्रिय भाव से प्रशिक्षण देता है।
वह अपने विद्याथी से मान्यता की कामना नहीं करता। शिक्षक दक्षिणा की कामना नहीं करता।
शिक्षक विद्यार्थी को स्वतंत्र कर उसको और ऊंचाइयों पर देखना चाहता है। शिक्षक नहीं चाहता की विद्यार्थी उसका ही गुण -गान करे तथा उसके वाद, सिद्धांत या विचारों से बंध कर उसी का प्रचार करे ।
शिक्षक शोध को प्रोत्साहित करता है , विद्यार्थी को अपनी सीमा से बाहर ले जा कर स्वतंत्र कर देता है।
गुरु तथा शिक्षक दोनों के धर्म अलग अलग होते हैँ

Wednesday, 1 July 2020

हमने कुछ भी गलत नहीं किया, हमारा एकमात्र दोष ये था कि जब दुनिया बदल रही थी और अन्य समूह, समाज, ग्रुप, संगठन, राष्ट्र, राज्य, सेना, कम्पनियां समय के अनुसार बदल रही थीं, हमने कभी भी खुद को बदलने की कोशिश नहीं की, हमने कुछ नया करने की कोशिश नहीं की और यही कारण है कि हम अब ब्यवस्था और प्रतिस्पर्धा, बाजार और विमर्श से बाहर हो गए हैं।