फिल्मों में इशारों में कही बात को समझते तो हम अपने अनुभव से ही है।
5/10/20 % ही तो दिखाया जाता है, फिल्मों में, बाकी 80/90/95% तो समाज स्वयं कल्पना करता है।
गानों में इशारे ही तो है औऱ समाज पूरा दृश्य देखने लगता है। नाचने लगता है, रोने लगता है, सर्वांग उत्तेजित हो अश्लील हरकतें करता है। 90 % तो फ़िल्म वाले कि यात्रा नहीं रहती।
वह तो एक दिशा में कोई तीर छोड़ता है। संकेत भर करता है। बाकी की तो आपकी अपनी यात्रा है। आपकी संस्कार जनित, नीति जनित, उत्तेजना जनित, आदत से प्रभावित, तर्क से तय की गई, अंदाज तो आपने खुद ही लगाया।
वह तीर किस दिशा में छोड़ा गया इसका अंदाज समाज को ही लगाना है।
अब यदि फ़िल्म वाले ने, गाने वाले ने, डायलॉग लिखने वाले ने, कलाकार ने अपने लिखे, बोले, किये, देह यष्टि से आपको ताड़ लिया या आपने 10% मार्ग दिखाने पर बाकी नब्बे % मार्ग तय कर लिया,अपना रास्ता खोज लिया तो मानना चाहिए कि फ़िल्म वाले ने, लिख कर, बोल कर, देह यष्टि से आपको आपका वास्तविक रूप दिखाया।
तो हुई न फ़िल्म, गीत, डायलॉग आपकी तस्वीर और समाज का आईना।
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