Monday, 28 December 2020

 इसी प्रश्न को उलट कर पुछे। देने वाले वहाँ तक क्यों' कैसे जाते है? क्या उन्हे गुस्सा तक नहीं आता? क्या उन्हें सजा का डर नहीं लगता?

मेरे कार्य काल मे मैने एक क्रम मे यह पेशकार ऐंड पर 100% रोकने में सफलता पाई। पेशकारों ने मेरी बात 100% मानी।

दो महिनों मे वकीलों के संगठन ने बहुत परेशान हो जाने की बात की। अधिवक्ता लिपिक ने भी बहुत परेशानी की बात की।

बाद में पता चला की पेशकारों की आड़ में बहुत लोग अपना धन्धा चलाते है।

पेशकारों के 10% से इन बिचौलियों का 200% बिल चलता है'।धन्धा चलता रहता है। कचहरी के इस घालमेल का मेग्निफाईड विज्ञापन ही इस परिसर की भीड़ का रहस्य है। एक का 200 प्रचार करो, सब को बदनाम करो और अपना पेट भरो। बदनामी सारी पेशकार के जिम्मे। बाकी सब तो सेवा शुल्क लेते है। सेवक हैं।

पेशकार को तो पता भी नहीं चलता।

पर पेशकार के बारे मे यही सब फैलाना ही होगा ताकि बाकी 99% का ब्यपार चलता रहे।

देखीये, केश के निपटते ही ये दलाल मुँह लटकाये घूमते रहते है।

इनकी डायरी में कितने कब के निपट गये मुकदमे अब भी चलते रहते है और हर बीस एक दिन बाद एक अण्डा देते रहते है। बस पेशकार का नाम चलता रहे। बहुत से मुव्क्किल दो तीन साल से कचहरी आये नहीं' बस वकील,ताईद पेशकार का खर्च भेज रहें हैं।

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