दोषी लगने, दिखने से लेकर दोषी सिद्ध होने, दोषी प्रमाणित होने तक के बीच की यात्रा के लिये जमानत की ब्यवस्था है। पुलिस दोषी दिखने या लगने तक ही है। दोषी ही है, यही इसी अपराध का विधानत: दोषी है यह न्यायालय का काम है। पुलिस का काम दोषी सिद्ध करना, प्रमाणित करना नहीं है। पुलिस को बन्दूक दी गई है। उसे निर्णय का भी अधिकार दे देंगे क्या?
कोर्ट को निर्णय का ही अधिकार है। बन्दूक कोर्ट के पास नहीं है।
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