Monday, 28 December 2020

 इंदिरा जी के समय विपक्ष में पर्याप्त नैतिक बल था, वे सीधे इंदिरा जी की आंख से आँख मिला कर बात कर पाते थे - संख्या बल के आधार पर नहीं, अपने नैतिक बल के आधार पर। उन्हें शासन पक्ष से कोई फेवर, मुरव्वत की कभी जरूरत नहीं थी।इंदिरा उन्हें राजनैतिक आधार पर ही जेल तक पहुँचा पाई हो। सीधे कोई भ्र्ष्टाचार का आरोप इंदिरा जी अपने विरोधियों पर न लगा पाई , न सम्भव था।

मोदी जी को तो दबा, कुचला, भ्रष्टाचार से ढका, रंगा, कचहरी, कोर्ट, वकील, जेल के अंदर बाहर करता विपक्ष मिला जो मोदी या सरकार तो छोड़िये, न्यायाधीशों, अधिकारियों, पुलिस-इनकमटैक्स वालों के बगल में भी खड़े होने में डरते है, बराबरी का ब्यवहार का मनोबल उनके पास नहीं रहा।यह विपक्ष अपनी पोजिसनिंग के लिये मीडिया की चिरौरी करता दिखता है।

यही है इंदिरा और मोदी की तुलना के पैरामीटर।

और भी हो सकते हैं।

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