Monday, 27 July 2015



मेघनाद , कुम्भकर्ण , ने कम से कम अपनों का साथ तो दिया। कृष्ण ने भी अर्जुन का साथ तो दिया ही। कर्ण ने दुर्योधन का त्याग तो नहीं ही किया। अंत तक भीष्म ने सिंहासन के साथ निष्ठां निभाई।अपनों के प्रति यही धर्म है
धर्म के नाम पर भी अपनों का त्याग नहीं ही करना उचित है।
अपनों को त्याग धर्म का आवरण ओढ़ जो भी राम के पास आता है , उसे देख राम भी सकुचा जाते हैं.

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