Tuesday, 7 July 2015

एकांगी समाज पूरा समाज नहीं होता . पूर्ण समाज को बहुमुखी होना ही होगा . बहु मुखी नहीं ,सर्व मुखी .समाज में सफाई कर्मचारी से लेकर राजा, मंत्री वैद्य सभी चाहिए.सक्षम मूल जमीनी स्तर पर काम न हो तो समाज पैदा ही नहीं होता . केवल नक्शे से ताजमहल नहीं बना करता .केवल सोने चांदी से चूल्हे न तो जलाये जा सकते हैं ,न रोटियां बनाई जा सकती है . केवल गॉड ,ईश्वर , अल्लाह , हरी नाम ,काव्य- कविता ,नमाज-बन्दगी -अरदास -पूजा , किर्तन से व्यक्ति चल सकता है , सुडौल सुदृढ़ समाज नहीं .
समाज बनता है - चलता है - आगे बढ़ता है -कारीगर, मजदूर, गृहिणी, सेवक, सिपाही, माँ-पिता, तथा उनकी मेहनत, बलिष्ठ भुजाओं से बहने वाले पसीने - उनकी समझ- चातुर्य-बुद्धि -विवेक और सतत् आदान-प्रदान से

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