यह बात एक बार फिर से समझी जा सकती है कि कैसे बचपन में बिताए दिन जीवनभर हमें ड्राइविंग फोर्स की तरह अपनी दिशा में खींचते रहते हैं। यह वह बल है जो हमारे भीतर हमेशा मौजूद रहता है। जिनका आत्मबल कमजोर होता है वे समाज और दुनियाभर के बाहरी बलों का दबाव झेल नहीं पाते और भटक जाते हैं।
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