न कोई प्रतिरोध, न विरोध, न ही प्रतिशोध,
प्रतिकार भी नहीं, कुछ भी अस्वीकार नहीं-
केवल परस्पर विश्वास की नींव पर खड़ा
कितने चौराहों पर खड़ा, कितनी बार अड़ा
कितनी बार गिरा, गिर कर कैसे हुआ खड़ा
जड़ नहीं चेतन हूँ,फिर रहूँ किस विध पड़ा
विश्वास बचाने के लिये, धर्म से भी लड़ा
धर्म था ,अधर्म के साथ खड़ा रहना पड़ा
मैं मेघनाद, चौराहों पर खड़ा ,रहा अड़ा
स्वधर्म के लिये, स्वयं अधर्म-धर्म से लड़ा।
प्रतिकार भी नहीं, कुछ भी अस्वीकार नहीं-
केवल परस्पर विश्वास की नींव पर खड़ा
कितने चौराहों पर खड़ा, कितनी बार अड़ा
कितनी बार गिरा, गिर कर कैसे हुआ खड़ा
जड़ नहीं चेतन हूँ,फिर रहूँ किस विध पड़ा
विश्वास बचाने के लिये, धर्म से भी लड़ा
धर्म था ,अधर्म के साथ खड़ा रहना पड़ा
मैं मेघनाद, चौराहों पर खड़ा ,रहा अड़ा
स्वधर्म के लिये, स्वयं अधर्म-धर्म से लड़ा।
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