हमारे
पहाड़ क्या अनन्त हैं, कैसे बचेंगे, यदि हम इसी तरह तोड़ते, फोड़ते,
काटते, डायनामाइट से उड़ाते रहे तो आने वाली पीढ़ी पर्वतों को तो देख भी
नहीं पायेगी।
पर्वतों को नंगा करके, प्यासा छोड़ कर, उसका अंग भंग कर हमने पर्वतों का
शील-भंग किया है- हमने अपने लिये कौन सा दन्ड निर्धारित किया है-- नहीं भी किया है तो, दन्ड तो मिलेगा ही, वह भी ऐसा कि हमारी आने वाली नस्लें हमें कोसते हुए याद रखेगी।
पर्वतों को नंगा करके, प्यासा छोड़ कर, उसका अंग भंग कर हमने पर्वतों का
शील-भंग किया है- हमने अपने लिये कौन सा दन्ड निर्धारित किया है-- नहीं भी किया है तो, दन्ड तो मिलेगा ही, वह भी ऐसा कि हमारी आने वाली नस्लें हमें कोसते हुए याद रखेगी।
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