Saturday, 6 July 2013

ख्वाहिशों के बहाने कट जाती है,

चारों ओर रेत के टीले और आँधियों के बीच जब रास्ते नही दिख रहे होते, घुप्प अंदेरी रात में ख्वाहिशें ही तो नखलिस्तान हैं, रौशनी है, इतमिनान है, फिर इन्हीं ख्वाहिशों के बहाने रात भी कट ही जाती है, -आगे का रास्ता खुद ब खुद दिख पड़ता है

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