पहाड़ रोता रहा
तुम सोये रहे
नदियाँ बेघर हुई
तुम सोते ही रहे .
आज बगीचा चिल्लाया
अब भी तो जगो
खेत जल उठे
तुम खेलते रहे .
बचपन बिकता रहा
तुम खेल खेलते रहे
लाशें लटकती दिख रही
अब भी तो समेटो यह खेल .
पर्वतों को सोने दो
नदी को बस बहने दो
बगीचे को गाने दो
बचपन को फिर आने दो
खेत को जगने दो
लाश न अब लटकने दो
बंद करो जमात में नाड़े खोलना
अपने आप पर शर्म को आने दो .
तुम सोये रहे
नदियाँ बेघर हुई
तुम सोते ही रहे .
आज बगीचा चिल्लाया
अब भी तो जगो
खेत जल उठे
तुम खेलते रहे .
बचपन बिकता रहा
तुम खेल खेलते रहे
लाशें लटकती दिख रही
अब भी तो समेटो यह खेल .
पर्वतों को सोने दो
नदी को बस बहने दो
बगीचे को गाने दो
बचपन को फिर आने दो
खेत को जगने दो
लाश न अब लटकने दो
बंद करो जमात में नाड़े खोलना
अपने आप पर शर्म को आने दो .
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