अनुभवों की लंबी सी यात्रा के बाद
कुछ सुगन्ध, कुछ व्रण दुर्गंध लिये,
कुछ वाणी वाण दग्ध, कुछ बन्ध लिये।
*एक फिसलन भरे बड़े से पहाड़ की*
*चोटी से उतरता हुआ मैं*
*किसे क्या-क्या, कब-कब,*
*कहाँ-कहाँ, कितना-कितना*
*दिये जाना है, देते जाना है*
*बस इसी एक सोच से*
*थके कदमों में भी*
*बिजली दौड़ जाती है*
*थक कर चूर मैं*,
*फिर एक बार तेजी से कदम* *बढ़ाता चला जाता*,
*उसी फिसलन वाले पहाड़ पर ही*
*एक और नए शिखर की ओर*।
कुछ सुगन्ध, कुछ व्रण दुर्गंध लिये,
कुछ वाणी वाण दग्ध, कुछ बन्ध लिये।
*एक फिसलन भरे बड़े से पहाड़ की*
*चोटी से उतरता हुआ मैं*
*किसे क्या-क्या, कब-कब,*
*कहाँ-कहाँ, कितना-कितना*
*दिये जाना है, देते जाना है*
*बस इसी एक सोच से*
*थके कदमों में भी*
*बिजली दौड़ जाती है*
*थक कर चूर मैं*,
*फिर एक बार तेजी से कदम* *बढ़ाता चला जाता*,
*उसी फिसलन वाले पहाड़ पर ही*
*एक और नए शिखर की ओर*।
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